Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 78
________________ [७१ अहिंसा को विजय] को तैयार हुआ। मैं जिस समय यहाँ आया, सर्वत्र शान्तता थी । जिस मार्गसीढियों से मैं राजकन्या के कक्ष में प्रविष्ट हुआ, वहाँ जलते हुए दीपक के मन्द मन्द प्रकाश में पलंग पर कोई स्त्री सो रही है, यह दिखलाई पडा । यह राजकुमारी ही होना चाहिए ऐसा निश्चय कर प्रथम दीपक बुझाया और फिर यह कटार उसके हृदय में घुसादी । एक जोर की चीख के साथ वह गत प्राण हो गई । रक्त से भरी कटारी लेकर मैं ज्यों ही बाहर पाने को हया कि त्यों ही सीढ़ियों से किसी के आने की पदचप्पी सुनाई दी। 'कोई पा रहा है यह सोचकर मैं बगल की खिड़की से कूद पड़ा । जैसे ही कदा कि इसने (महेन्द्र को दिखाकर) मुझे जोर से बाहुपाश में बांध करपकड लिया । मैं यह बहुत खोटा दुष्कर्म कर रहा हूँ यह मुझे बराबर लगता था परन्तु विवशता वश करने को प्रेरित हुया था, इसी कारण ग्राज मेरे पकड़े जाने पर मैंने कोई प्रतीमा गहीं किया भयको गुम्योदय से गाय मेरे हाथों से इस सुकुमारी राजपुत्री का बध नहीं हुअा इसका मुझे बहुत ही अानन्द हो रहा है । मेरे इस कृत्य का मुझे पूरा-पूरा पश्चात्ताप हो रहा है । महाराज !” इस प्रकार कह कर उसने एक दीर्घ श्वास छोडी । एवं करबद्ध हो पुनः एक बार क्षमा याचना की। इसके अनन्तर मृगावती ने भी लज्जा छोडकर अपनी सारी कथा-क्रिया अपने पिता को सबके सामने स्पष्ट सुनादी । उस कन्या का धैर्य और कर्त्तव्यनिष्ठता देख कर सबको बहुत हो कौतुक हुअा। मृगावती द्वारा कथित विवरण को सुनते ही नरसिंह को पकडने वाला कोई सामान्य कैदी नहीं है, अपितु चम्पानगर का युवराज है, यह सबको निश्चित रूप से विदित हो गया। यह दृश्य देख-सुनकर पद्मनाभ राजा को अपनी विपरीत धारणा और वर्तनाका पूरा पश्चात्ताप हो रहा था। वे शीघ्र ही आगे आये और महेन्द्र युवराज को हृदय से लगाकर गद्गद् वाणी में बोले "युवराज ! युवराज ! क्षमा करो, मेरी अोर से भयंकर अपराध हुआ है। तुम्हें नहीं पहिचान कर एक सामान्य पुरुष की भांति कैद कर जेल में डालने का बड़ाभारी अपराध मुझ से हुआ है कुमार! इस अविचार को क्षमा करो ? कुछ भी हो, आपके आगमन से ग्राज मेरी पुत्री का प्राण रक्षण हुआ है। इससे मुझे परमानन्द हो रहा है। इस प्रकार कहते हुए पद्मनाभ राजा ने बड़े प्रेम से महेन्द्र का हाथ पकडकर अपने पास बैठाया । मृगावती

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