Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ अहिंसा की विजय
पुरोहित की कुछ भी नहीं चली। मात्र शाप देता, सबको गाली-गलौच एवं अपशब्द बोलता हुआ वह देवों के गर्भगृह में चला गया। लोगों का बहुत वाद-विवाद चलने लगा । इतने में राजसैनिक आगे आये और उन्होंने उस तरुण को पकड़ा, तथा राजप्रासाद की ओर ले गये । अब क्या था, इस घटना से तो लोगों में विशेष असन्तोष छा गया । वे और जोर से जयघोष करने लगे । "अहिंसा धर्म की जय" "अहिंसा परमोधर्मः ।"
उस दिन सबेरे से अर्थात् ग्यारह बजे से लगभग अपने महल की गच्ची पर ही बठी मृगावती देवों के मन्दिर को ओर हो देखती रहो। श्राज भी कोई एकाद हिंसा का उपदेश करने वाला वीर युवक कोई आने वाला है क्या ? आया है क्या ? उसे भी बन्दी बनाकर लाते हैं क्या ? इसी का वह विचार कर रही थी कि उस एक को बन्दी बनाकर राजद्वार की ओर लाते हुए सैनिक उसे दिखाई पड़े। उनके अत्यन्त निकट श्राने पर उस - मृगावती ने उस तरुण को बड़ी गौर से देखा । उसका चेहरा देखते ही एकदम फीका पड़ गया। उसे अपने नेत्रों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उसका शरीर सिहर उठा। रोम-रोम खड़ा होगया । उसके सर्वअङ्ग थरथर कांपने लगा | कौन ? महेन्द्र ? महेन्द्र ? हाय हाय ! "ऐसे होठ हिलाते - बुडवुडतो धडाम से पृथ्वी पर गिर पडी। वह कदी दूसरा, तीसरा कोई नहीं था, श्रपितु चम्पानगर का युवराज महेन्द्र ही था। मृगावती को लिखे पत्रानुसार वह आज प्राचार्य श्री के दर्शनों को आया था। वे प्रतिज्ञाबद्ध आठों वीर अपना-अपना कर्त्तव्य पालन करते हुए कैदखाने में बन्दी हो चुके हैं, यह उसे विदित हो गया | आचार्य श्री जी उपवास किये मौन धारण कर विराजमान थे । उसी कारण नवमें दिन महेन्द्र ने स्वयं वह दिन अपने ऊपर लिया । उसने राजपोशाक उतारदी | अलंकारादि सब फेंक दिये। सामान्य वेष में अत्यन्त साधारण पुरुष की भांति देवी के मन्दिर की ओर आया था। इसी कारण यह कोई राजकुमार है । ऐसी किसी को भी कुछ भी कल्पना नहीं हुई थी। जिस समय उसे पकड़ कर राजमहल की ओर ला रहे थे, उस समय मृगावती ने ही उसे पहिचाना था। उसकी दशा क्या हुयी बह ऊपर बता ही दिया है। महेन्द्र अपने ही विचारों में डूबा चला जा रहा था । इस कारण मृगावती की ओर उसकी दृष्टि नहीं गई थी। उसे सीधे जेल की कोठरी को ओर लेकर आये। मृभावती को एकाएक यह उबर से कई दासियां दोडकर उसे देखने को आ गई। प्रयत्न करने लगी ।
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क्या हुआ ? इधरऔर सचेत करने का
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