Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 12
________________ अहिंसा की विजय ] अभ्यासानुसार सप्ताह में दो तीन बार देवी के दर्शनों को जाते थे। उसी समय वह माणिकदेव से देवी जी के माहात्म्य और चमत्कारों के विषय में बहुत देर तक चर्चा वार्ता करते थे । यदा कक्ष कोई विशेष महत्व का कार्य होता तो स्वत: माणिकदेव राजा के पास माता और वहीं बहुत देर तक बह राजा के साथ चर्चा करता था। आज भी ऐसे ही किसी महत्व के सम्बन्ध में उसकी सवारी आई थी। उसके चेहरे पर कुछ गाम्भीर्य था। थोडी देर दोनों ही चुप रहे । महाराज ने शान्ति भंग की । आदर से उसकी ओर पुनः देखा, और बोले "क्या आज्ञा है आपकी ।" ___ मेरी ! मेरी क्या प्राज्ञा है ? अधिक गम्भीर होकर पिरोहित जी बोलने लगे, "देवी ने आपको कुछ सन्देश दिया है वहीं कहने को मैं आया हूं।" देवी का सन्देश ! यह शब्द सनते ही राजा का शरीर सिहर उठा । क्योंकि देवी काई न कोई महत्वपूर्ण आदेश देती है। उसका सन्देश कोई विशेष दिशा निर्देश करने वाला होता है। साक्षात् देवी का शब्द सुनने को कितने ही लोग उत्सुक रहते हैं । इसके लिये सब लोग मारिणकदेव की मनावनी करते हैं, उसे मनमाना धन देते हैं क्योंकि वही देवी को बुलवा सकता है। ऐसी लोगों में भ्रान्ति फैली हुई है । माणिकदेव द्वारा देवी को सभी प्रसन्न करना चाहते, हैं वरदान मिलता है न देवी का । राजा ने देखा कि जब कभी उसका विशेष काम हुया तो स्वयं देवी के मन्दिर में जाकर माणिकदेव के कथनानुसार पूजा करवा कर देवी को प्रसन्न करता था और देवी की आज्ञा सुन कर तदनुकूल कार्य कर सफलता पाता । कई बार उसे प्रत्यक्ष आज्ञा मिली थी। इससे उसे बहुत खुशी थी । आज तो स्वतः ही देवी जी प्रसन्न हो सन्देश देना चाहती हैं तो फिर कहना ही क्या है ? पिरोहित पूजा कर देवी से प्रश्न पुछता और तदनुसार देवी प्रत्यक्ष बोल कर उत्तर देती। इस प्रकार सर्वत्र यह जाल पसर गया था । परन्तु जव कि प्रश्न पूछे बिना ही देवी जी बोली हैं तो विशेष महत्त्व समझना चाहिए। प्राज देवी जी का सन्देश-क्या मुझे पुत्र प्राप्ति के सम्बन्ध में क्या कुछ महादेबी ने कहा है क्या ? इस प्रकार का प्रश्न-कल्पना राजा के मन में चट से आई और गई, उसका हृदय आनन्द से भर गया। किन्तु यह प्रसन्नता अधिक समय रह न सकी। पिरोहित की प्रति गम्भीर मुद्रा देखकर यह सन्देश आनन्द का नहीं है कोई संकट का सूचक मालूम होता है ऐसा उसे प्रतीत होने लगा । इस प्रकार राजा सन्देह दोला में भूलने लगा।

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