Book Title: Ahimsa ki Vijay
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 10
________________ अहिंसा की विजय । अाकर्षक एवं वीतराग भावोत्पादक थी। इसी मल्लिनाथ प्रभु के नाम से मल्लिपुर नाम इस नगर को प्राप्त हुआ था। इस प्रकार किंवदन्ति चली पा रही थी। कुछ लोग इसे ही सत्य मानते थे । इस राजघराने के सभी लोग-पाबालवृद्ध पहाड़ पर स्थित मल्लिनाथ भगवान को ही भक्ति पूजा करते थे। उस मन्दिर की व्यवस्था के लिए भी राज्य की ओर से पूर्ण व्य. वस्था थी । मन्दिर के नाम से जमीनादि दी गई थी। मन्दार पहाड़ यद्यपि छोटा-सा ही था तो भी अपने स्वाभाविक सौन्दर्य से अद्वितीय और आकर्षक था । आकर्षक परम' मनोहर जिनालय तो इसका तिलक स्वरूप था । यह सबके आकर्षक का केन्द्र था । यह जिनभवन पर्वत के शिखर पर स्थित था । पहाड़ की तलहटी से कुछ दूर पर मल्लिपुर नगर बसा हुआ था । इसी कारण नगर से सैकड़ों नर-नारो भक्तजन नियम से प्रतिदिन पहाड़ पर जाने थे और दर्शन, पूजा-भक्ति करते थे । परन्तु यह नियम बराबर चल नहीं सका। इस राज परम्परा के अनुसार पद्मनाभ राजा बचपन से चालीस वर्ष तक बराबर प्रतिदिन दर्शन-पूजन को जाते रहे। परन्तु दैवयोग से उसकी भावना ही विपरीत हो गई। उसने मल्लिनाथ प्रभु के दर्शन ही छोड़ दिये। इसका कारण यह हुआ कि राजा को चार-पाँच सन्तान हुयीं और सबको सव मृत्यु का ग्रास हो गई । इससे उसका मन उदास हो गया । सन्तति सुख बिना राज्य सुख उसे तुच्छ ओर असन्तुष्ट का हेतु लगने लमा । उसके मन में रात-दिन एकमात्र यही टीस लगी रहती कि किसी प्रकार मेरी सन्तान चिरजीवी हो । पाँच छ: बच्चे हो-हो कर मर गये इसमें उसका धर्य तो छट हो गया योग्यायोग्य विवेक भी नष्ट हो गया था । या यूं कहो बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई । सारासार विचार छोड़ सन्तान जीवित रहे। इसके लिए अनेकों मिथ्या मार्गों का सेवन करने लगा। नाना कृदेवों की आराधना कर अपने सम्यक्त्व रत्न को खो दिया । अनेक धर्म, देव, मन्त्र-तन्त्र जादू-टोना करतेकरते एक दिन एक कालीदेवी का भक्त मिला । उसने राजा से कहा, राजन्, आप पशु बलि देकर काली माता की पूजा-भक्ति करें तो आपकी मनोकामना अवश्य सफल होगी । आज तक राजघराने में इस प्रकार की हिंसा काण्ड-बलिप्रथा जड़मूल से ही नहीं थी। परन्तु स्वार्थान्ध राजा यह भुल गया। सच है "विनाशकाले विपरीत बुद्धि ।" उसने उस पापी व्यक्ति के कथनानुसार पशुबलि देना स्वीकार कर लिया। पशुबलि चढाकर राजा ने कालीमाता की पूजा की। कर्म धर्म संयोग की बात है, इस प्रकार देवी को बलि चढाने के बाद पद्मनाभ को कन्यारत्न उत्पन्न हुया । उसका नाम मृगावति

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