Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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भारत में गणराज्यों के जात विरादरियों के रूप में विकसित होने का परिणाम यह हुवा, कि इतिहास के उस युग में जब संसार में कहीं भी लोकसत्तात्मक शासन की सत्ता नहीं थी, सब जगह एकच्छत्र सम्राट शासन करते थे, यहां भारत में सर्वसाधारण जनता अपना शासन स्वयं करती थी, अपने कानून स्वयं बनाती थी, अपने साथ सम्बन्ध रखने वाले मामलों का निर्णय अपनी बिरादरी की पंचायत में स्वयं करती थी । यदि राजनीतिक दृष्टि से वे किसी सम्राट के अधीन हो गये, तो अन्य दृष्टियों से वे फिर भी स्वाधीन रहे । सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में उनका गरण अब भी जीवित रहा । भारतीय इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है, और इसका श्रेय यहां की जात बिरादरियों को ही है ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर यह मानना पड़ेगा, कि जात बिरादरियों ने किसी समय बड़ा उपयोगी और महत्वपूर्ण कार्य किया है ।
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मुझे आशा है, कि मेरी इस पुस्तक से जाति भेद के विकास पर कुछ नया प्रकाश पड़ेगा और हमारे देश भाइयों को अपने देश की एक प्राचीन संस्था के वास्तविक ऐतिहासिक रूप को जानने में कुछ सहायता मिलेगी ।
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अग्रवाल जाति का जो यह इतिहास मैंने लिखा है, उसे पूर्ण नहीं कहा जा सकता । यह इतिहास मुख्यतया साहित्यिक अनुश्रुति के आधार पर लिखा गया है । अग्रवालों का मूल निवास स्थान अगरोहा है । वहां अग्रवाल लोग सदियों तक रहे। उनकी प्राचीन कृतियां, अग्रवशी राजाओं के स्मारक- सब अगरोहा के विस्तृत खेड़े के नीचे दबे पड़े हैं। यह खेड़ा (खण्डहरों का ढेर ) ६५० एकड़ में विस्तृत है । इस विस्तृत खेड़े की खुदाई से अवश्य ही वह ठोस सामग्री उपलब्ध होगी, जिससे साहित्यिक अनुश्रुति की सत्यता की जांचा जा सकेगा और अग्रवालों का वस्तुतः प्रामाणिक इतिहास तैयार किया जा सकेगा । पर यह कार्य किसी एक व्यक्ति द्वारा सम्पादित नहीं हो सकता । इस कार्य को या तो सरकार
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