________________ भूमिका ग्यारह ने न केवल आद्योपान्त सुना है अपितु अनेक क्लिष्ट एवं जटिल स्थलों के अनुवाद में संशोधन एवं परिमार्जन भी करवाया है। आज वे सदेह हमारे समक्ष उपस्थित नहीं हैं लेकिन उनका निष्काम सहयोग सदैव स्मृतिपथ पर अंकित रहेगा। गणाधिपति तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ को मैं अत्यन्त श्रद्धा से प्रणाम करती हूं, जिन्होंने मुझे बीस वर्ष की छोटी उम्र में आगम के कार्य में नियोजित कर श्रुत की सेवा करने का दुर्लभ अवसर प्रदान किया। परमपूज्य आचार्य महाश्रमण के मार्गदर्शन, आशीर्वाद एवं शक्ति-संप्रेषण से ही यह कार्य सम्पन्नता तक पहुंचा है। वंदनीया महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी की वात्सल्य प्रपूरित दृष्टि मुझे सदैव कर्मशील बनाए रखती है। आदरणीया मुख्यनियोजिका विश्रुतविभाजी का उदारतापूर्ण सहयोग स्मरणीय है। भूतपूर्व नियोजिका समणी मधुरप्रज्ञा एवं वर्तमान नियोजिका समणी ऋजुप्रज्ञा के व्यवस्थागत सहयोग तथा सभी समणियों की हार्दिक शुभकामनाओं का स्मरण करती हुई यह संकल्प व्यक्त करती हूं कि गुरु-कृपा, संघ की शक्ति एवं बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैं अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग में रत रह सकू। ... ग्रंथ के टंकण में कुसुम सुराना तथा संदर्भ मिलाने एवं प्रूफ से प्रूफ मिलाने आदि के कार्य में सुनीता चिंडालिया, प्रीति बैद तथा कविता सिन्हा का सहयोग भी उल्लेखनीय है। आचार्य तुलसी शताब्दी की पूर्व सन्ध्या में यह लघु लेकिन महत्त्वपूर्ण पुष्प समर्पित करते हुए मुझे सात्विक आनंद की अनुभूति हो रही है। डॉ. समणी कुसुमप्रज्ञा