Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 65
________________ 52 आगम अद्भुत्तरी नहीं देखा। उसने अपनी मां से पूछा-'धम्मिल्ल कहां है?' मां ने कहा- . 'मुझे ज्ञात नहीं कि वह कहां गया है?' बसन्ततिलका ने जान लिया कि उसकी मां ने इसीलिए उत्सव का आयोजन करके सखियों को बुलाया था। उसने प्रतिज्ञा करते हुए कहा-'यह मेरा वेणीबंध मेरा प्रिय धम्मिल्ल ही खोलेगा। ऐसा कहकर उसने सारे आभूषण उतार दिए तथा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र धारण करके शरीर धारण हेतु अत्यल्प आहार से जीवन व्यतीत करने लगी। प्रिय विरह में वह अत्यन्त दुर्बल हो गई। धम्मिल्ल वहां से उठकर किसी जीर्ण उद्यान में घूमने लगा। वहां उसे अगड़दत्त मुनि के दर्शन हुए। उन्होंने उसे कहा-'धम्मिल्ल! तुम अज्ञानी व्यक्ति की भांति आत्मघात का प्रयत्न क्यों कर रहे हो? धम्मिल्ल बोला-'मैंने पूर्वभव में धर्म नहीं किया इसलिए मुझे इतना दुःख भोगना पड़ा। अगड़दत्त मुनि ने कहा- मैंने भी अपने जीवन में अनेक दुःख देखे हैं। मैं स्वयं उन दुःखों का निग्रह करने में समर्थ हूं, मुझे अपना दुःख कहो।' धम्मिल्ल ने अपना सारा घटना प्रसंग सुनाया और कहा–'मेरे माता-पिता तथा वैभव आदि सबका वियोग हो गया। अब कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं पुनः वैभव प्राप्त कर सकू। अगड़दत्त मुनि ने विद्या की साधना तथा उपवास आदि तपविधि के बारे में बताया। साथ ही यह भी कहा कि जो छह मास तक आयम्बिल तप कर लेता है, उसे ऐहलौकिक इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है। धम्मिल्ल ने कुछ समय के लिए द्रव्यलिंग ग्रहण किया। प्रासुक आहार-पानी के द्वारा आयम्बिल तप प्रारम्भ कर दिया। तप करते हुए उसके छह मास बीत गए। उसके बाद अगड़दत्त मुनि को प्रणाम करके वह वहां से निकला। रास्ते में उसने भूतगृह में विश्राम किया। तपस्या से क्लान्त शरीर होने के कारण उसे नींद आ गई। देवता ने कहा-'धम्मिल्ल तुम आश्वस्त हो जाओ। श्रेष्ठ बत्तीस कन्याओं के साथ तुम्हारा विवाह होगा।' कालान्तर में अनेक कुल कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। अंत में धर्मरुचि अनगार के पास अपने पूर्वभव को सुनकर वह

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