________________ आगम अद्दुत्तरी को राज्य सौंपकर कैसे प्रव्रजित हो गया? यह वृत्तान्त मैं सुनना चाहता हूं।' तब सुधर्मास्वामी बोले-'पोतनपुर का राजा सोमचन्द्र अपनी पटरानी धारिणी के साथ गवाक्ष में बैठा था। रानी राजा के केशों को संवार रही थी। उसने श्वेत केश को देखकर कहा–'स्वामिन् ! दूत आ गया है।' राजा ने चारों ओर देखा। उसे कोई दूसरा व्यक्ति दिखाई नहीं दिया, तब वह बोला-'देवी! तुम्हें दिव्यचक्षु प्राप्त हैं।' तब रानी ने राजा को सफेद केश दिखाते हुए कहा-'राजन्! यह धर्मदूत है।' यह देखकर राजा का मन खिन्न हो गया। यह जानकर देवी बोली-'क्या आप वृद्धत्व के भावों से लज्जित हो रहे हैं? पटहवादन से इस वृद्धत्व का निवारण करवा लो।' राजा बोला-'देवी! ऐसी कोई बात नहीं है। कुमार अभी बालक है। वह प्रजापालन में असमर्थ है-यह सोचकर ही मेरा मन खिन्न हुआ है। मैंने अपने पूर्वजों के मार्ग का अनुसरण नहीं किया, यह विचार मुझे खिन्न कर रहा है। तुम कुमार प्रसन्नचन्द्र का संरक्षण करती हुई घर में ही रहो।' देवी ने इसको मानने से इन्कार कर दिया। तब राजा ने राज्य-परित्याग का निश्चय कर पुत्र को राज्यभार संभलाकर एक धायमाता तथा रानी के साथ दिशाप्रोक्षित तापस के रूप में दीक्षा ग्रहण कर ली। वह शून्य आश्रम में निवास करने लगा। दीक्षित होते समय रानी गर्भवती थी। क्रमशः गर्भ वृद्धिंगत होने लगा। प्रसन्नचन्द्र के चारपुरुषों (गुप्तचरों) ने उसे यह बात बताई। समय पूरा होने पर रानी ने एक बालक को जन्म दिया। उसे वल्कल में रखने के कारण बालक का नाम वल्कलचीरी रखा गया, वह इसी नाम से प्रसिद्ध हो गया। बालक का प्रसव होते ही विसचिका रोग से ग्रस्त होकर रानी मर गई, तब धायमाता ने बालक का वनमहिषी के दूध से पालन-पोषण किया। कुछ ही समय के पश्चात् धायमाता भी काल-कवलित हो गई। ऋषि रूप में सोमचन्द्र वल्कलचीरी के लालन-पालन में कठिनाई का अनुभव करते थे। ज्यो-ज्यों बालक बड़ा होने लगा, महाराज प्रसन्नचन्द्र अपने गुप्तचरों से प्रतिदिन वल्कलचीरी के