________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं का मन नाटक में नहीं लगा अतः घर के बाहर पुरानी खाट पर सो गया। खटमल के कारण उसको नींद नहीं आई। दामनक ने सोचा'इससे अच्छा तो यही है कि पुनः नाटक देखने जाऊं और मित्र के यहीं सो जाऊं।' इधर नाटक समाप्त होने पर सागरदत्त का पुत्र उसी खाट पर सो गया। भ्रमवश सेवकों ने उसको दामनक समझकर तलवार के प्रहार से मौत के घाट उतार दिया। प्रातः जब रहस्य खुला तो सागरदत्त को बहुत दुःख हुआ। शोक समाप्त होने पर सेठ ने साधु की वाणी को सत्य जानकर उसको अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का मालिक बना दिया। 10. अगड़दत्त / - उज्जयिनी नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसके सारथी का नाम अमोघरथ था। अमोघरथ की पत्नी का नाम यशोमती तथा पुत्र का नाम, अगड़दत्त था। अगड़दत्त के पिता छोटी उम्र में ही दिवंगत हो गए। वह दृढप्रहारी के पास रथ चलाने की विद्या सीखने लगा। शिक्षा प्राप्त करके जब वह राजा से मिला तो राजा ने कहा-"तुम्हारी शिक्षा हिंसा प्रधान है, वास्तविक शिक्षा तो महाव्रतों का पालन है।" उसी समय नागरिकों ने राजा के पास आकर प्रार्थना की-"एक चोर से पूरा नगर पीड़ित है। कृपा करके हमें उसके आतंक से मुक्त कराएं।" अगड़दत्त ने राजा के समक्ष चोर को पकड़ने का प्रण किया। उसने चोर को पकड़कर गुप्त स्थान में रखे धन को नागरिकों के यहां वितरित करवा दिया। - अगड़दत्त का विवाह कौशाम्बी निवासी यक्षदत्त की पुत्री श्यामदत्ता के साथ हुआ। विवाह करके वह कौशाम्बी से उज्जयिनी जा रहा था। मार्ग में उसे एक सार्थ मिला, वह भी सार्थ के साथ चलने लगा। उस सार्थ में एक धूर्त परिव्राजक भी था। अगड़दत्त 1. आगम 112 / /