________________ 58 आगम अद्दुत्तरी लूट लिया और उसे जला डाला। जब दमदंत वापिस आया तो उसने हस्तिनापुर पर चढ़ाई कर दी। दमदंत के भय से कोई नगर से बाहर नहीं आया। दमदंत ने कहा-'शृगालों की भांति शून्य स्थानों में जहां घूमना हो, वहां इच्छानुसार घूमो। जब मैं जरासंध के पास गया था, तब तुमने मेरे देश को लूटा था, अब बाहर निकलो।' जब हस्तिनापुर से कोई बाहर नहीं निकला, तब महाराज दमदंत अपने देश चले गए। कालान्तर में वे कामभोगों से विरक्त हुए और प्रव्रजित हो गए। एक बार एकलविहार प्रतिमा को स्वीकार कर वे विहार करते हुए हस्तिनापुर आए और गांव के बाहर प्रतिमा में स्थित हो गए। अनुयात्रा के लिए निर्गत युधिष्ठिर ने आकर वंदना की। शेष चारों पांडवों ने भी मुनि को वंदना की। इतने में ही दुर्योधन वहां आ गया। उसके साथियों ने उसे कहा'यही वह दमदंत है।' दुर्योधन ने उसे बिजौरे के फल से आहत किया। उसके पीछे जो सेना आ रही थी, सबने एक-एक पत्थर मुनि की ओर फेंका। देखते-देखते मुनि पत्थर की राशि से ढ़क गए। लौटते समय युधिष्ठिर ने पूछा-'यहां एक मुनि प्रतिमा में स्थित थे। वे कहां हैं ?' लोग बोले-'इस पत्थर-राशि के पीछे मुनि हैं और ये पत्थर दुर्योधन के कारण फेंके गए हैं।' युधिष्ठिर ने दुर्योधन को फटकारा और पत्थरों को हटाया। युधिष्ठिर ने मुनि का तैल से अभ्यंगन किया और क्षमायाचना की। मुनि दमदंत का दुर्योधन तथा पांडवों के प्रति समभाव था। 12. मुनिपति सुव्रता नगरी में मुनिपति नामक न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पृथ्वी तथा राजकुमार का नाम मणिभद्र था। एक बार 1. (क) आगम 112, विस्तार हेतु देखें आवनि 565, आवचू 1 पृ. 492, आवहाटी 1 पृ. 243, 244, आवमटी प. 475 / (ख) मरणविभक्ति प्रकीर्णक (443) में दमदन्त महर्षि के सम्बन्ध में निम्न गाथा मिलती हैजह दमदंत महेसी, पंडव-कोरवमुणी थुय-गरहिओ . आसि समो दोण्हं पि हु, एव समा होह सव्वत्थ / /