Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं बनायां और मुनिचन्द्र को उज्जयिनी नगरी का आधिपत्य दिया। एक बार महाराज चन्द्रावतंसक माघ महीने में अपने वासगृह में प्रतिमा में स्थित हुए। उन्होंने यह संकल्प किया कि जब तक दीपक जलता रहेगा, मैं प्रतिमा में स्थित रहूंगा। शय्यापालिका ने सोचा-'अंधेरे में राजा को कष्ट होगा इसलिए दूसरे प्रहर में बुझते दीपक में उसने तैल डाल दिया।' वह आधी रात तक जलता रहा। उसने आकर पुन: उस दीपक में तैल डाल दिया, जिससे रात्रि के तीसरे प्रहर तक वह दीपक जलता रहा। अंतिम प्रहर में भी दीपक में तैल डाला, जिससे वह. प्रभातकाल तक जलता रहा। राजा बहुत सुकुमार 'था। वेदना से अभिभूत होकर वह.प्रभात बेला में दिवंगत हो गया। उसके बाद सागरचन्द्र राजा बना। एक दिन उसने अपनी माता की सौत से कहा-'तुम्हारे दोनों पुत्रों के लिए मेरा यह राज्य ले लो, मैं प्रव्रजित होऊंगा।' मुझे इससे राज्य प्राप्त हुआ है, यह सोचकर उसने राज्य लेना नहीं चाहा। कालान्तर में सागरचन्द्र को राज्य-लक्ष्मी से सुशोभित देखकर उसने सोचा-'यह मेरे पुत्रों के लिए राज्य दे रहा था परन्तु मैंने नहीं लिया। यदि मैं राज्य ले लेती तो मेरे पुत्र भी इसी प्रकार सुशोभित होते। अभी भी मैं इसको मार डालूं तो राज्य प्राप्त हो सकता है।' यह सोचकर वह इसके लिए अवसर देखने लगी। एक दिन सागरचन्द्र भूख से आकुल था। उसने रसोइये को आदेश दिया कि पौर्वाह्निक भोजन वहीं भेज देना, मैं सभागृह में भोजन करूंगा। रसोइये ने सिंहकेशरी मोदक बनाकर दासी के हाथ भेजे। प्रियदर्शना ने यह देख लिया। उसने दासी से कहा-'मोदक इधर लाओ। मैं इसे देखू तो सही।' दासी ने उसे वह मोदक दिखाया। प्रियदर्शना ने पहले से ही अपने दोनों हाथ विषलिप्त कर रखे थे। मोदक का स्पर्श कर उसे विषमय बना डाला। वह दासी से बोली-'अहो! सुरभिमय मोदक हैं, इसे ले जाओ। उसने दासी को मोदक दे दिया। दासी ने वह मोदक राजा को अर्पित कर दिया। उस समय दोनों कुमार गुणचन्द्र और बालचन्द्र राजा के पास ही बैठे

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98