________________ आगम अद्दुत्तरी थे। राजा ने सोचा-'ये दोनों कुमार भी भूखे हैं, मैं अकेला इन्हें कैसे खाऊ?' उस मोदक के दो भाग कर दोनों को एक-एक भाग दे दिया। दोनों . उस मोदक को खाने लगे। तत्काल विष का वेग बढ़ा। वह उनके मुंह पर प्रतीत होने लगा। राजा ने हड़बड़ाकर वैद्यों को बुलाया। वैद्यों ने आकर राजकुमारों को स्वर्ण पिलाया। दोनों स्वस्थ हो गए। राजा ने दासी को बुलाकर सारी बात पूछी। दासी बोली-'किसी ने इस मोदक को नहीं देखा, केवल इन कुमारों की माता ने इसका स्पर्श किया था। राजा ने प्रियदर्शना को बुलाकर कहा-'पापिनी ! मैंने राज्य देना चाहा, तब तुमने नहीं लिया। अब तुम मुझे मारकर राज्य लेने का प्रयत्न कर रही हो। तुम्हारे प्रयत्न से तो मैं बिना कुछ परलोक का संबल लिए ही परलोकगामी बन जाता।' यह सोच, दोनों भाइयों को राज्य देकर राजा सागरचन्द्र प्रव्रजित हो गया। . __एक बार उज्जयिनी से साधुओं का एक संघाटक वहां आया। प्रव्रजित राजा सागरचन्द्र ने पूछा- वहां कोई उपद्रव तो नहीं है?' उन्होंने कहा-'वहां राजपुत्र और पुरोहितपुत्र दोनों साधुओं को बाधित करते हैं।' वह कुपित होकर उज्जयिनी गया। वहां के मुनियों ने उसका आदर-सत्कार किया। वे सांभोगिक मुनि थे अतः भिक्षावेला में उन्होंने कहा-'सबके लिए भक्त-पान ले आना।' उसने कहा-'मैं आत्मलब्धिक हूं, आप मुझे स्थापनाकुल बताएं।' उन्होंने एक शिष्य को साथ में भेजा। वह उसे पुरोहित का घर दिखाकर लौट आया। वह वहां अंदर जाकर ऊंचे शब्दों में धर्मलाभ देने लगा। यह सुनकर भीतर से स्त्रियां हाहाकार करती हुई बाहर आईं। मुनि जोर से बोला-'क्या यह श्राविकाओं के लक्षण हैं?' इतने में ही राजपुत्र और पुरोहितपुत्र-दोनों ने बाहर जाकर रास्ता रोक दिया और दोनों बोले'भगवन् ! आप नृत्य करें।' वह पात्रों को रखकर नाचने लगा। वे बजाना नहीं जानते थे। उन्होंने कहा-'युद्ध करें।' वे दोनों एक साथ सामने आए। मुनि ने उनके मर्मस्थान पर प्रहार किया। उनकी अस्थियां ढ़ीली हो गईं। उनको छोड़कर मुनि द्वार को खोलकर बाहर चले गए। राजा के पास शिकायत