Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 78
________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं गईं। इस प्रकार बारह वर्ष तक वह भोग भोगता रहा। देवता ने उसे फिर प्रतिबोधित किया। तब महिलाओं ने बारह वर्षों की मांग की। उनकी मांग पूरी की। फिर चौबीस वर्षों के पश्चात् सभी प्रव्रजित हो गए। मेतार्य नौ पूर्वो का अध्येता बन गया। वह एकलविहार प्रतिमा स्वीकार कर राजगृह में घूमने लगा। एक दिन वह एक स्वर्णकार के घर में गया। वह स्वर्णकार महाराज श्रेणिक के लिए स्वर्ण के आठ सौ यव बना रहा था। श्रेणिक चैत्य की अर्चना त्रिसंध्या में करता था इसलिए यवों का निर्माण हो रहा था। मुनि उस स्वर्णकार के घर गए। एक बार कहने पर उन्हें भिक्षा नहीं मिली। वे वहां से लौट गए। स्वर्णकार के यव एक क्रोंच पक्षी ने निगल लिए। स्वर्णकार ने आकर देखा तो उसे यव नहीं मिले। राजा की चैत्य-अर्चनिका की वेला आ गई। स्वर्णकार ने सोचा-'आज मेरी हड्डी-पसली तोड़ दी जाएगी।' स्वर्णकार ने साधु को शंका की दृष्टि से देखा। उसे यवों के विषय में पूछा पर मुनि मौन रहे। तब स्वर्णकार ने मुनि के शिर को गीले चमड़े के आवेष्टन से बांध दिया। मुनि से कहा-'बताओ, किसने वे यव लिए हैं ?' कुछ ही समय में शिरोवेष्टन के कारण मुनि की दोनों आंखें भूमि पर आ गिरीं / क्रौंच पक्षी वहीं बैठा था। स्वर्णकार के घर में लकड़ी काटी जा रही थी। उसकी एक * शलाका क्रौंच पक्षी के गले पर लगी, जिससे उसने सारे स्वर्ण-यवों का वमन कर दिया। लोगों ने स्वर्णकार से कहा-'अरे पापिष्ठ! ये रहे तेरे यव।' मुनि कालगत होकर सिद्ध गति को प्राप्त हो गए। लोगों ने आकर मेतार्य मुनि को मृत अवस्था में देखा। यह बात राजा तक पहुंची। राजा ने स्वर्णकार के वध की आज्ञा दे दी। वधक स्वर्णकार के घर गए। स्वर्णकार के सभी सदस्य द्वार बंद कर प्रवजित हो गए और बोले-'श्रावक धर्म से बढ़ो।' यह सुन राजा ने उन्हें मुक्त कर दिया और कहा–'यदि मुनित्व को छोड़कर उत्प्रव्रजित हुए तो मैं सबको तैल के कड़ाह में उबाल दूंगा।" 1. आगम 112, आवनि. 565/4, 5, आवचू. 1 पृ. 492-95, आवहाटी. 1 पृ. - 244-46, आवमटी. प. 476-78 /

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