________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं 57 के साथ वहां से गुजरा। उसने हमारे भाई चोर सेनापति को मार दिया। हम छहों उसका पता लगाने हेतु उज्जयिनी आ गए। एक बार उद्यान उत्सव में उसकी पत्नी सर्प काटने से मूर्च्छित हो गई। विद्याधरों ने उसको ठीक कर दिया। जब वह अंगारे लेने गया तो प्रतिशोध के कारण बदला लेने के लिए छोटे भाई को मारने का दायित्व देकर हम वहीं छिप गए। भाई ने दोनों को मारने की धमकी दी। उसकी पत्नी ने कहा-“मैं स्वयं अपने पति को मार दूंगी पर मुझे मत मारो।" हमारा छोटा भाई आश्वस्त हो गया। वह दीपक को ढ़क भी नहीं पाया था कि वह युवक आ गया। वह युवक तलवार अपनी पत्नी के हाथ में देकर आग सुलगाने लगा। पत्नी ने मारने हेतु तलवार उठाई लेकिन हमारे छोटे भाई के हृदय में करुणा उत्पन्न हो गई। उसने तलवार वाले हाथ पर प्रहार किया। तलवार हाथ से छूटकर दूर गिर गई। युवक के पूछने पर उसने बहाना बनाया कि घबराहट में तलवार हाथ से छूट गई। स्त्री स्वभाव की इस कुटिलता से हमें वैराग्य हो गया और हमने दृढ़चित्त अनगार के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। ... अगड़दत्त अपने ही जीवन के घटना प्रसंग को सुनकर पत्नी के विश्वासघात को जानकर विरक्त हो गया। उसने मुनियों को कहा कि आपके भाई का घात करने वाला मैं ही हूं। अब आप मुझे .संसार-सागर को पार करने हेतु प्रव्रजित करें। वह वहीं उन मुनियों के पास दीक्षित हो गया। 11. दमदन्त अनगार हस्तिशीर्ष नगर में दमदन्त नामक राजा राज्य करता था। हस्तिनापुर नगर में पांच पांडव रहते थे। दोनों में परस्पर वैर था। एक बार महाराज दमदंत राजगृह में जरासंध के पास गए हुए थे। पांडवों ने उसके राज्य को 1. आगम 112, विस्तार हेतु देखें वसुदेवहिंडी पृ. 35-48 /