Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 67
________________ 54 आगम अद्दुत्तरी कालान्तर में वह यौवन को प्राप्त हो गया। एक बार सेठ गोपालकों के गांव में आया। दामनक को देखकर उसने उसके बारे में पूछा। सेठ सागरदत्त समझ गया कि चाण्डाल ने इसे जीवित छोड़ दिया है। सेठ ने उसे मारने का अन्य उपाय खोजा। सेठ ने गोपालक से कहा- "इस पत्र को युवक के साथ मेरे घर भिजवा दो, यह गोपनीय पत्र है। यह युवक विश्वासी प्रतीत होता है अतः यह उपयुक्त रहेगा।" दामनक पत्र लेकर चल दिया। नगर के बाहर उद्यान में एक देव मंदिर था। थकान मिटाने हेतु वह वहां लेट गया। ठंडी हवा में उसे गहरी नींद आ गई। उसी समय सेठ सागरदत्त की पुत्री देवपूजन के लिए वहां आई। उसका नाम विषा था। वह दामनक को देखकर उस पर मोहित हो गई। दामनक के पास पड़े पत्र को उसने कुतूहलवश उठा लिया। उसने देखा कि यह पत्र उसके भाई के नाम है तथा उसमें युवक के बारे में लिखा है कि स्वागत-सत्कार करके युवक को तुरन्त विष दे देना, इस कार्य में भूल या असावधानी न हो। विषा दामनक पर पूर्णतया मोहित हो चुकी थी अतः उसने पास पड़े तिनके से आंख में लगाए काजल सै विष के स्थान पर विषा कर दिया और पत्र को वहीं रखकर चल दी। दामनक ने सेठ सागरदत्त के पुत्र को वह पत्र दे दिया। पत्र पढ़कर उसके पुत्र ने दामनक को भलीभांति देखा। उसके व्यक्तित्व को देखकर उसने मन ही मन पिता के निर्णय की सराहना की। उसने सम्बन्धियों को प्रीतिभोज देकर सबकी साक्षी से दामनक का विवाह विषा के साथ कर दिया। सेठ सागरदत्त जब लौटकर आया और दामनक को जमाता के रूप में देखा तो वह फिर उसको मारने का षडयंत्र करने लगा। एक बार दामनक अपने मित्र के साथ नाटक देखने गया। दामनक

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