________________ 53 परिशिष्ट 2 : कथाएं विरक्त हो गया और उन्हीं के पास दीक्षित हो गया। दीक्षित होकर अनेक वर्ष श्रामण्य पर्याय का पालन करके वह अच्युत कल्प देवलोक में बावीस सागरोपम स्थिति वाला देव बना। 9. दामनक . राजगृह नगरी में एक सेठ के दामनक नामक पुत्र था। जब दामनक आठ वर्ष का हुआ, तब परिवार में महामारी का प्रकोप हो गया। महामारी के भय से पड़ोसी लोगों ने घर के चारों ओर तीखी कांटों की बाड़ लगा दी। घर का कोई सदस्य बाहर नहीं निकल सका। आठ वर्षीय बालक दामनक किसी प्रकार बच गया। वह भीख मांगकर जीवन बिताने लगा। सेठ सागरदत्त ने अनाथ समझकर उसे अपने घर रख लिया। वह सेठ के यहां परिश्रम से काम करने लगा। सेठ भी उसकी लगन और ईमानदारी से बहुत खुश था। एक बार सेठ के यहां पर दो साधु भिक्षार्थ आए। वृद्ध साधु ने दामनक की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस बालक की तकदीर शीघ्र ही बदलने वाली है। कुछ ही दिनों में यह इस घर का मालिक बन जाएगा। साधु के कथन को सेठ ने सुन लिया। सेठ ने सोचा कि जब मेरा पुत्र सभी दृष्टियों से सक्षम है तो यह घर का मालिक क्यों बनेगा? इस बाधा को यहीं समाप्त कर देना चाहिए। सेठ ने चाण्डाल को धन का प्रलोभन देकर दामनक के वध का आदेश देते हुए कहा कि उसकी आंखें निकालकर मुझे दे देना। उसके भोले मुख पर अहिंसा के भाव देखकर चाण्डाल का मन द्रवित हो गया। उसने उसे वहां से दूसरे नगर जाने को कहा और - स्वयं हरिणी के बच्चे की आंखें निकालकर ले गया। दामनक वन में चलता हुआ एक गांव के पास पहुंचा। वहां एक गोपालक ने उसे अपने पास रख लिया। वह वहां गाएं चराते हुए आनंद से रहने लगा। 1. आगम 112, कथा के विस्तार हेतु देखें वसुदेवहिंडी पृ. 27-36 /