________________ आगम अङ्गुत्तरी समय भी वह पढ़ने-लिखने में व्यस्त रहता था। उसकी मां ने उसका ध्यान अध्ययन से हटाकर नव विवाहिता वधू की ओर आकृष्ट करना चाहा लेकिन वह सफल नहीं हो सकी। एक बार धम्मिल्ल की सास अपनी पुत्री से मिलने उसके ससुराल आई। उसका आदर-सत्कार किया गया। वह एकान्त में अपनी पुत्री से कुशलक्षेम पूछने लगी। पुत्री ने अपनी मां से दिल खोलकर बात की तथा पति की विरक्ति की बात बता दी। यह सुनकर वह क्रुद्ध हो गई। उसने धम्मिल्ल की मां से बात की। उसके क्रोध को देखकर धम्मिल्ल की मां कांप गई। अश्रुपूरित आंखों से उसने विश्वास दिलाया कि वह अपने पुत्र को समझाएगी। मां भी अपनी पुत्री को आश्वस्त करके चली गई। धम्मिल्ल की मां ने जब अपने पति से इस संदर्भ में बात की तो उसने कहा-'जब तक पुत्र का अध्ययन में मन लगे, यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है। व्याकरण आदि नई विद्या को स्थिर करने के लिए उसका परावर्तन आवश्यक है। भोगों के प्रति आकृष्ट करने हेतु मां ने धम्मिल्ल को ललितगोष्ठी में सम्मिलित कर दिया। ललितगोष्ठी में सम्मिलित होने पर वह उद्यान, कानन आदि में आंनदपूर्वक समय बिताने लगा। धम्मिल्ल एक बार राजा के यहां बसन्तसेना गणिका की पुत्री बसन्ततिलका के प्रथम नृत्य को देखने गया। वह उसमें आसक्त हो गया। वह गणिका के यहां गया और वहीं रहने लगा। उसके माता-पिता प्रतिदिन पांच सौ मुद्राएं बसन्तसेना वेश्या के यहां भेजते थे। धीरे-धीरे उनकी पूर्वार्जित सम्पदा क्षीण होने लगी। यशोमती घर को बेचकर अपने पीहर आ गई। उसने अपने सारे आभूषणों को गणिका के घर भेज दिया था। जब बसन्तसेना ने आभूषण देखे तो उसने दासी से पूछा-'ये आभूषण किसने भेजे हैं ?' दासी ने कहा-'ये धम्मिल्ल की पत्नी ने भेजे हैं।' वेश्या ने सोच लिया कि अब उसके पास इतना ही धन है। बसन्तसेना ने अपनी पुत्री बसन्ततिलका से कहा कि अब