Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ आगम अद्भुत्तरी 51. लंधिज्जति न सीम, ममुत्तिसवणाउ' सुवंसनरवतिणो। ___ जाणे पहरपमाणं', गमणागमणे व सुहमसुहं // अच्छे वंश के राजा मेरे वचन को सुनकर सीमा का उल्लंघन नहीं करते। मैं प्रहार करने वाले को जानता हूं। मेरे गमन-आगमन के आधार पर शुभ-अशुभ शकुन को जाना जाता है। 52. मेहुणसण्णारूढे, पासंति ममंगमागमविहिण्णू। . तेसि मणवंछितत्थं, साहेमी सव्वकालेणं॥ - शास्त्रवेत्ता ऐसा मानते हैं कि मैथुन संज्ञा में आरूढ़ मेरे गुप्त अंग को देखने वालों की मैं सब काल में मन-वाञ्छित प्रयोजनों की सिद्धि करता हूं। 53. जे रंक-ढिंकपमुहा, गिहाणि छायंति कुणति जीवत्तं। - भक्खंताण पसूणं, पुटुिं दुद्धं च अप्पेमि॥ (अब तृण कहता है)-दरिद्र और दिक आदि तृण से घर की छत का आच्छादन करते हैं। दरिद्र घास बेचकर जीविका चलाते हैं। मेरा आहार करने वाले पशुओं को मैं पुष्टि और दूध प्रदान करता हूं। 54. संगामे रोसिल्ला, न हणंति तिणं मुहम्मि लिंताणं / जायंति य निग्गंथा, सेज्जा-दंतादि सुद्धिकते॥ ___ मुझे मुख में लेने पर संग्राम में रोष युक्त व्यक्ति भी उसका वध नहीं करता। निर्ग्रन्थ साधु शय्या के लिए तथा दांत आदि की शुद्धि के लिए तृण की याचना करते हैं। 55. दब्भतिणेणं विप्या, पवित्तकरणाइ वेदपाठेणं। उवमिजंतो एसिं, कइकुसलो किं न लज्जेसि?॥ दर्भ के तृण से ब्राह्मण वेदपाठ के द्वारा वस्तु को पवित्र करते 1. 'त्तिठव' (म), 'त्तिवचणाउ (ब)। प्रस्थान के समय गधे का दायीं 2. 'जाणे पहरपमाणं' का अर्थ स्पष्ट नहीं ओर से बायीं ओर जाना शुभ है। यहां 'पहरयमाणं' पाठ होना शकुन माना जाता है। चाहिए। 5. “कालीणं (अ, ब, म, द)। 3. य (अ, द)। 6. गेहाणि (ब)। 4. शकुनशास्त्रियों की मान्यता है कि 7. लित्ताणं (ला)। .

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