________________ . 32 आगम अद्दुत्तरी 109. ठाणाणंगे भणितं, पंचण्हमवण्णवादबहुलेणं। दुल्लभबोधीभावं', लभंति जीवा य निच्चं पि॥ स्थानांग सूत्र में कहा गया है कि पांच व्यक्तियों का अवर्णवाद बोलने से व्यक्ति सदैव दुर्लभ-बोधित्व' को प्राप्त करते हैं। 110. एसिं सुवण्णवादे, जीवा पावंति सुलभबोधित्तं / . जह मगहाहिवकण्हादिएहि लद्धं खु सम्मत्तं॥ इनके गुणों की उत्कीर्तना करने वाले जीव सुलभबोधित्व' को प्राप्त करते हैं। जैसे मगधाधिप श्रेणिक और कृष्ण' आदि ने गुणोत्कीर्तना से सम्यक्त्व को प्राप्त किया। 111. धम्मा जयं थुवंतो, ललितंगकुमारुव्व लहति बोधिफलं। बहुवितहकवालिओ वि हु, भीमकुमारुव्व जायंति // धर्म से व्यक्ति विजयी होता है तथा ललितांगकुमार की भांति बोधि-फल को प्राप्त करता है। अत्यन्त वितथ आचरण करने वाला कापालिक भी भीमकमार२ की भांति, अहिंसक हो जाता है। हुआ। 1. बोहिय (अ, द, म, हे)। * अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म का वर्णवाद करता 2. पांच स्थानों से जीव दुर्लभ-बोधित्व कर्म का उपार्जन करता है * आचार्य-उपाध्याय का वर्णवाद करता * अर्हतों का अवर्णवाद करता हुआ। हुआ। * अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद करता * चतुर्विध संघ का वर्णवाद करता हुआ। हुआ। * आचार्य-उपाध्याय का अवर्णवाद करता * तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से हुआ। दिव्य गति को प्राप्त देवों का वर्ण* संघ का अवर्णवाद करता हुआ। वाद करता हुआ। (ठाणं 5/134) * तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से दिव्य 6, ७.कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, गति को प्राप्त देवों का अवर्णवाद करता कथा सं. 4, 5 / हुआ। (ठाणं 5/133) 8. धम्मेण (ब, म)। 3. अवण्ण' (म)। 9. वितरबालिओ (अ, ला, हे)। 4. दुलह° (म)। 10. यहां एकवचन' के स्थान पर 5. पांच स्थानों से जीव सुलभ-बोधिकत्व 'बहुवचन' का प्रयोग है। कर्म का अर्जन करता है- 11. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. * अर्हतों का वर्णवाद-श्लाघा करता हुआ। 2, कथा सं.६। 12. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 7 /