________________ आगम अद्दुत्तरी ललितांगकुमार को कहा-"यह सेवक केवल नाम से सज्जन है पर इसका स्वभाव दुष्ट है। इसे कुछ धन या जमीन दे देवें लेकिन अपने पास न रखें। स्वभाव से उदार होने के कारण कुमार ने उसका साथ नहीं छोड़ा। एक दिन राजा ने सज्जन से ललितांगकुमार की जाति आदि के बारे में पूछा / सज्जन ने सोचा कहीं राजा को मेरे बारे में संदेह न हो इसलिए . अपने दुष्ट स्वभाव के कारण कहा-"मैं श्रीवासपुर के राजा नरवाहन का पुत्र हूं। यह मेरा सेवक था। सुंदर होने के कारण किसी सिद्धपुरुष से विद्या सीखकर यहां आया हूं। पूर्वार्जित कर्म से इसे यहां का राज्य मिल गया। इसने मुझे पहचान लिया तथा अपना भेद न खुलने के भय से यह मेरा सत्कार करता है। यह बात सुनकर राजा व्याकुल हो गया और ललितांगकुमार को मारने का उपाय सोचने लगा। एक दिन राजा ने अपने पुरुषों से कहा कि आज रात्रि में महल में जो भी आए उसे बिना पूछे मार देना। रात को राजा ने ललितांग को बुलाया। राजपुरुषों के कहने पर ललितांग जाने को तैयार हुआ लेकिन राजकुमारी ने जाने नहीं दिया। ललितांग ने सज्जन को राजा के पास भेज दिया। राजपुरुषों ने उसे मौत के घाट उतार दिया। प्रात:कालं ललितांगकमार से राजा को यथार्थ की अवगति हुई। राजा ने अपने जामाता ललितांगकुमार से अपने कुकृत्य के लिए क्षमा मांगी और अपना बाकी का आधा राज्य भी उसे दे दिया। राजा स्वयं वन में तपस्या हेतु चला गया। राजा नरवाहन ने भी ललितांगकुमार को राज्य देकर स्वयं संन्यास ग्रहण कर लिया। एक बार संतों का आगमन होने से उन्होंने श्रावक व्रत स्वीकार किए। वृद्धावस्था में पुत्र को राज्य देकर ललितांगकुमार ने संन्यास ग्रहण कर लिया। 7. भीमकुमार और कापालिक कमलपुर नगर में हरिवाहन नामक राजा राज्य करता था। उसके 1. आगम 111 /