________________ 40 आगम अद्रुत्तरी 2. द्रव्य-परम्परा : मृगावती और प्रद्योत मृगावती वैशाली गणतंत्र के गणनायक महाराज चेटक की पुत्री थी। उसका विवाह कौशाम्बी के राजा शतानीक के साथ हुआ था। राजा शतानीक अपने राज्य में चित्रशाला बनवा रहे थे। उस चित्रशाला में एक चित्रकार ऐसा भी था, जिसे यक्ष का वरदान प्राप्त था। वह किसी व्यक्ति के एक अंग को देखकर. उसका पूरा चित्र बना सकता था। राजमहल में खड़ी रानी का उसने पैर का अंगूठा देख लिया। उसके आधार पर उसने रानी का चित्र बना दिया। ज्योहि चित्र तैयार हुआ, जंघा पर काले रंग का धब्बा पड़ गया। चित्रकार ने मिटाना चाहा लेकिन जितनी बार वह मिटाने का प्रयत्न करता, उतनी ही बार पुन: रंग का बिंदु वहां गिर जाता। चित्रकार ने उस चिह्न को मिटाने का प्रयत्न नहीं किया। चित्र देखकर राजा के मन में संदेह उत्पन्न हो गया कि यह चित्रकार दुराचारी है, तभी इसे रानी के गुप्त अंग के तिल का ज्ञान हुआ है। राजा ने उसे फांसी की सजा सुना दी। चित्रकार ने राजा को यक्ष के वरदान की बात कही। राजा ने परीक्षा के लिए उसे कुब्जा दासी का मुंह देखकर चित्र बनाने को कहा। चित्रकार ने यथार्थ चित्र बना दिया। इस पर भी राजा का कोप शान्त नहीं हुआ। उसने चित्रकार के दाहिने हाथ का अंगूठा कटवा दिया। अकारण दंडित करने के कारण उसके मन में प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हो गई। उसने बाएं हाथ से चित्र बनाने का अभ्यास कर लिया और मृगावती का चित्र बनाकर उज्जयिनी नरेश चंडप्रद्योत को दिखाया। चंडप्रद्योत चित्र देखते ही कामान्ध हो गया। मृगावती को प्राप्त करने के लिए उसने कौशाम्बी पर आक्रमण कर दिया। राजा शतानीक आकस्मिक हमले से भयभीत हो गया। अतिसार रोग होने से उसका प्राणान्त हो गया।