________________ आगम अद्भुत्तरी 60. बहिराण कण्णजावो, वीणाण' वादणं जहा लोगे। तह आणापरिभटुं', नडुव्व सविडंबगंरे चरणं॥. जैसे बधिरों के समक्ष चुगली तथा वीणा-वादन निरर्थक होता है, वैसे ही आज्ञा-भ्रष्ट व्यक्ति का आचरण नट की भांति विडम्बना युक्त होता है। 61. आणाभटुं चरणं, वेसा-दासीण णेह तत्तुल्लं। किंपागफलमसारं, तत्तायसि साइयं नीरं // ___ आज्ञाभ्रष्ट साधु का चारित्र वेश्या और दासी के स्नेह, के समान (अस्थिर) होता है। वह किंपाक फल की भांति असार तथा तप्त लोहे के ऊपर स्वाति नक्षत्र के पानी गिरने के समान निष्फल होता है। 62. गयभुत्तकविट्ठफलं, पयंगरंगुव्व तह य मिगतण्हा। * विणयविहूणं रूवं, संझारागुव्व विज्जुलयं // विनय रहित रूप गजभुक्त कपित्थ-फल, सूर्य की प्रभा', मृगतृष्णा, संध्या-राग तथा बिजली की चमक की भांति नाशवान् होता है। 63. नयणविहीणं सुमुहं, रसाइया लवणभावबाहिरिया। नीईं विणा किं रज्जं, पेम्मं विणा ण घरबंधो०॥ आज्ञा रहित धर्म नयन के बिना सुंदर मुख, नमक के बिना रस आदि, नीति के बिना राज्य तथा प्रेम रहित गृहस्थ जीवन के समान होता है। 64. लच्छी विणा न सुक्खं, सोयारविवज्जितं च वक्खाणं। पुत्तं विणा ण वंसो, तह आणविवज्जितो धम्मो॥ जैसे लक्ष्मी के बिना सुख, श्रोता के बिना व्याख्यान तथा पुत्र के बिना वंश नहीं चलता, वैसे ही आज्ञा से रहित धर्म नहीं होता। 1. वीणाए (अ)। 7. यहां आचार्य अभयदेवसूरि ने क्षणभंगुर 2. आणपरिब्भर्टी (ब)। वस्तुओं के उदाहरण दिए हैं। सूर्य का 3. बिडं (अ, द)। रंग सुबह अरुण होता है, दोपहर को 4. तत्ताइसी (ला)। श्वेत तथा शाम को पुनः लाल हो 5. वेश्या और दासी को जब तक पैसा जाता है। वह बदलता रहता है। मिलता है, तब तक स्नेह रखती हैं, 8. रसोईया (ला)। उसके बाद वे सम्बन्ध तोड़ लेती हैं। 9. णीइ (अ), णीई (ला)। 6. कवित्थ' (म)। 10. पर" (अ, द, हे)।