Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ आगम अद्भुत्तरी 19 पत्र हैं। इस प्रति में गाथा के ऊपर संस्कृत छाया लिखी हुई है। अंत में "इति श्रीआगमअट्टत्तरीसूत्रसमाप्तः संवत् 1933 ना ज्येष्ठप्रथमतृतीयायां" का उल्लेख है। (हे) यह प्रति श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मंदिर, पाटण (गुजरात) से प्राप्त है। इसकी क्रमांक संख्या 16547 है। इसकी पत्र संख्या 15 है। इस प्रति में भी गाथा के ऊपर संस्कृत छाया लिखी हुई है। प्रति के अंत में "इति श्रीआगमअद्भुत्तरीसूत्र समाप्तः। शुभं भवतु कल्याणमस्तु वाच्यमानः चिरंजीयात् लेखकस्य" का उल्लेख है। यह प्रति भी उन्नीसवीं सदी में लिखी गई प्रतीत होती है। संपादन का इतिहास सन् 1979 का प्रसंग है। पूज्यवरों ने कुछ साध्वियों और मुमुक्षु बहिनों को आगम शब्दकोश के कार्य में नियुक्त किया। उस समय लगभग शताधिक ग्रंथों से कार्य करने का निर्णय लिया गया। ग्रंथों की सूची में एक नाम आगम अट्ठत्तरी का भी था लेकिन वह प्रकाशित रूप में प्राप्त नहीं थी। सन् 2007 में आगम कार्य के लिए कुछ हस्तप्रतियां एवं ग्रंथ देखने के लिए अहमदाबाद जाना हुआ। वहां लालभाई दलपतभाई विद्या मंदिर एवं महावीर आराधना केन्द्र कोबा-इन दोनों संस्थानों में आगम अद्रुत्तरी की हस्तलिखित प्रतियां देखीं। मन में विकल्प उभरा कि आचार्य महाप्रज्ञ के मुख से इस ग्रंथ के बारे में सुना है अत: इसका सम्पादन होना चाहिए। कई स्थानों पर पाठ की शंका होने से अनेक प्रतियों से इसका पाठ-सम्पादन किया गया है। इस ग्रंथ के अनेक स्थल पाठ और अर्थ की दृष्टि से आज भी विमर्शनीय हैं। आशा है विद्ववर्ग इस पर ध्यान केन्द्रित करेगा। इस ग्रंथ के अनुवाद को साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी

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