Book Title: Agam Athuttari
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ विषय-सूची 73. . धर्मशील व्यक्ति का दोष-कथन करने वाले स्वयं भ्रष्ट। जिनदर्शन से भ्रष्ट की गति। मोक्ष का मूल कारण-दर्शन। सम्यक्त्व-प्राप्ति के लाभ। जिन-वाणी का महत्त्व। कांक्षा से होने वाली हानियां। आचरणहीन की स्थिति। अभीक्ष्ण दर्शन की प्राप्ति के उपाय। सम्यक्त्व की परिभाषा। सम्यक्त्व का महत्त्व। वंदनीय कौन? मिथ्यादृष्टि कौन? साधुओं की निंदा करने वाले को संताप। गौरव करने से होने वाली हानि। मोक्ष का स्वरूप। वंदना किसे? ज्ञान आदि का सार क्या? सम्यक्त्व का महत्त्व। दर्शनभ्रष्ट की स्थिति। संगति का प्रभाव। सज्जन व्यक्ति संगति से अप्रभावित / पुनः सम्यक्त्व की प्राप्ति दुर्लभ। संयम रहित लिंग आदि निरर्थक। जिन-वाणी का महत्त्व। बोधि की दुर्लभता। 91. . .92-97. 101. 102.

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