________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद * 39. देवा वसंति पुच्छे, विप्पाणं भूमिभाग सुरहीओ। उवमिजंतो एसिं, कइकुसलो किं न लज्जेसि?॥ ___ मेरी पूंछ में देवता निवास करते हैं। गायों से ब्राह्मणों का स्थान शोभित होता है। ऐसे गुणों से युक्त मुझ गाय से आज्ञा रहित पुरुष की उपमा करते हुए हे कवि कुशल! तुम लज्जा का अनुभव क्यों नहीं करते हो? 40. जाणामो गीयगुणा, मरणं अप्पेमु कण्णरसिगा य। 'अइसिंगीउ व२ दंता, भिक्खं पावंति जोइंदा॥ (मृग विरोध प्रदर्शित करते हुए कहता है-) हम गीत के गुणों को जानते हैं। हम कर्ण के रसिक बनकर मरण को प्राप्त हो जाते हैं। हमारे सींग से बने वाद्य को बजाकर दान्त योगी भिक्षा प्राप्त करते हैं। - 41. मह चम्माओ सेज्जासण पुत्थिय-कणग-कुंदणाकरणं। मह नामेण मयंको, मियच्छि नयणाण उवमाणं॥ मेरे चर्म से शय्या और आसन का निर्माण होता है। पुस्तक तथा बाण के तरकश रखने के लिए भी मेरा चर्म उपयोग में आता है। मेरे नाम से चन्द्रमा का नाम 'मृगांक' तथा महिला की आंखों को 'मृगाक्षी' की उपमा दी जाती है। 42. पढमपहरम्मि दक्खिण, सउणा मण्णंति पंडिता विसदा। . उवमिजंतो एसिं, कइकुसलो किं न लज्जेसि?॥ विशद पंडित प्रथम प्रहर में दायीं ओर मेरे दर्शन को शकुन 1. ब्रह्मवैवर्त पुराण (21/91-93) के वाद्यों का विशेष महत्त्व रहा है। अनुसार गाय के शरीर में समस्त प्राचीन काल में बकरी अथवा मेंढ़े देवताओं का निवास है तथा उसके / के सींगों से वाद्य बनाए जाते थे। पैरों में सभी तीर्थ निवास करते हैं। वर्तमान में हिरण अथवा बारहसिंगा भविष्यमहापुराण के उत्तरपर्व के 69 / / के सींग से वाद्य बनाए जाते हैं। अध्याय (पृ. 432-34) में भी वर्तमान में भी हिरण के सींग से विस्तार से गाय के माहात्म्य का बनी सिंगी योगी लोग बजाते हैं। वर्णन मिलता है। विस्तार हेतु देखें जैन आगम वाद्य 2. सिंगाओ (म, हे), सिंगाओ वा (अ, कोश पृ. 42, 43 / 4. सेज्जा पुण (हे)। 3. प्राचीन वाद्यों में सींग से बनाए गए 5. ब और म प्रति में यह गाथा नहीं है।