________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद तथा चरण' और करण' के पालनकर्ता सुसाधु मेरे गुरु हैं। विशुद्ध सिद्धान्त का कथन करने वाले गुरु का उपदेश धर्म है। यही प्रवचन तथ्य है, इस आस्था को जगद्गुरु तीर्थंकर ने सम्यक्त्व कहा है। 33. जो पूइज्जति देवो, तव्वयणं जे नरा विराधेति। हारेंति बोधिलाभं, कुदिट्ठिरागेण अण्णाणी॥ जो अर्हत् देव पूज्य हैं, उनके वचन की जो लोग विराधना करते हैं, वे अज्ञानी कुदृष्टि राग के कारण बोधि-लाभ को हार जाते हैं। 34. पूया-पच्चक्खाणं, पोसह-उववास-दाण-सीलादी। सव्वं पि अणुट्ठाणं, णिरत्थगं कणगकुसुमव्व॥ उसके लिए पूजा-भक्ति, प्रत्याख्यान, पौषध, उपवास, दान, शील आदि सभी अनुष्ठान धतूरे के पुष्प की भांति निरर्थक होते हैं। 1. चरणसत्तरी-पांच महाव्रत, दश पडिलेहणगुत्तीओ, श्रमणधर्म, सतरह प्रकार के संयम, अभिग्गहा चेव करणं तु।। दशविध वैयावृत्त्य, नौ ब्रह्मचर्य की (ओभा 3) गुप्तियां, ज्ञान आदि त्रिक, बारह प्रकार ओघनियुक्ति के टीकाकार ने चरण का तप तथा चतुर्विध कषाय-निग्रह- और करण का भेद स्पष्ट करते ये चरण के सत्तर अंग हैं। ये चारित्र हुए कहा है कि नित्य अनुष्ठान चरण को सुदृढ़ बनाते हैं अतः इनको चरण- तथा प्रयोजन होने पर किया जाने सत्तरी कहा जाता है वाला अनुष्ठान करण कहलाता है। वय-समणधम्म-संजम- 3. एक सम्यक्त्वी के लिए अर्हत् के वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। अतिरिक्त चतुर्विध देव वंदनीय नहीं नाणाइतियं तव-कोह- होते तथा अर्हत् वचन के अनुसार .. निग्गहाई चरणमेयं॥ चरण सत्तरी और करण सत्तरी का . . (ओभा 2) पालन करने वाले सुसाधु गुरु ही . 2. करणसत्तरी-चतुर्विध पिण्डविशोधि, वंदन करने योग्य होते हैं। - पांच समितियां, बारह भावनाएं, बारह 4. कुद्दिष्ट्ठि (अ, द)। साधु प्रतिमाएं, पंचविध इंद्रिय- 5. धतूरे का फूल देखने में सुंदर लेकिन निरोध, पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना सुगंध रहित होता है। वह किसी . तथा चतुर्विध अभिग्रह-ये करण उपयोग में नहीं आता। उसको खाने के सत्तर भेद हैं वाले का जीवन संकट में पड़ जाता पिण्डविसोही समिई, है, वैसे ही आज्ञा से रहित सभी . भावण पडिमा य इंदियनिरोहो। धार्मिक अनुष्ठान निरर्थक होते हैं।