Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका रूप में गूंथते हैं। ज्ञान की अविच्छिन्न परम्परा के लिए ऐसा होना आवश्यक है। आगमों की वाचनाएं
भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद लगभग ८००-१००० वर्ष तक आगमों का व्यवस्थित संकलन/संपादन नहीं हुआ। आगमों की मौखिक परम्परा चली। अंजलि में रखे पानी की भांति मौखिक परम्परा से ज्ञान की परम्परा का क्रमशः क्षीण होना स्वाभाविक ही था। जैसे बुद्ध के उपदेश को व्यवस्थित करने हेतु भिक्षुओं ने भिन्न-भिन्न समयों में तीन संगितियां कीं। उसी प्रकार महावीर-वाणी की सुरक्षा एवं उसको व्यवस्थित रूप देने के लिए मुख्य रूप से तीन वाचनाएं हुईं। भगवान् के निर्वाण के १६० वर्ष बाद पाटलिपुत्र में जैन श्रमणसंघ एकत्रित हुआ, उस समय अनावृष्टि आदि के कारण अंगों का अव्यवस्थित होना सहज था। आपस में एक दूसरे से पूछकर श्रमणों ने ११ अंग व्यवस्थित किए। दृष्टिवाद का ज्ञाता कोई नहीं था। आचार्य भद्रबाहु चतुर्दशपूर्वी थे लेकिन वे महापान (महाप्राण) ध्यान की साधना हेतु नेपाल गए हुए थे। संघ की प्रार्थना पर उन्होंने स्थूलिभद्र आदि मुनियों को दृष्टिवाद की वाचना देनी प्रारंभ की लेकिन ऋद्धि आदि का प्रयोग करने से उन्होंने उनको अंतिम चार पूर्वो के अर्थ का ज्ञान नहीं दिया। आर्थी दृष्टि से अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु हुए।
द्वादशवर्षीय दुष्काल के बाद वीर-निर्वाण नौवीं शताब्दी में आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में मथुरा में श्रमणसंघ एकत्रित हुआ और स्मृति के आधार पर कालिक श्रुत को व्यवस्थित किया। यह वाचना मथुरा में हुई अतः माथुरी वाचना कहलाई।
आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में वलभी में श्रमणसंघ द्वारा आगमों को व्यवस्थित किया गया। इसका भी वही काल है, जो माथुरी वाचना का है। इसे नागार्जुनीय वाचना भी कहते हैं।
__ वीर निर्वाण के ९८०२ वर्ष बाद वलभी में आचार्य देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने स्मृतिबल की क्षीणता को देखकर आगमों को लिपिबद्ध करने का साहसिक कार्य किया। नंदीसूत्र में उन आगमों की सूची मिलती है। उस समय दोनों वाचनाओं में हुए पाठभेदों में समन्वय करके महत्त्वपूर्ण पाठभेदों का उल्लेख कर दिया गया। नंदी में उल्लिखित अनेक ग्रंथ आज अनुपलब्ध हैं। वर्तमान में उपलब्ध आगम प्रायः वलभी वाचना के हैं। आवश्यक सूत्र
___ आवश्यक जैन साधना का प्रायोगिक आध्यात्मिक अनुष्ठान है। यह अपने दोषों का पर्यालोचन करने तथा उनके परिमार्जन की सुंदर प्रक्रिया प्रस्तुत करता है इसलिए इसे अध्यात्म का उत्कृष्ट ग्रंथ कहा जा सकता है। श्वेताम्बर परम्परा में श्रमणों के लिए यह ध्रुवयोग/नित्यकर्म है। पर्व तिथियों में श्रावक भी आवश्यक का अनुष्ठान करते हैं। आवश्यक के वैशिष्ट्य एवं महत्त्व का ज्ञान इस बात से किया जा सकता है कि इस पर सर्वाधिक व्याख्या ग्रंथ प्राप्त होते हैं तथा आचार्य भद्रबाहु ने भी सर्वप्रथम इसी ग्रंथ पर नियुक्ति लिखने की प्रतिज्ञा की थी।
__ नियुक्तिकार के अनुसार श्रमणों एवं श्रावकों के लिए यह अवश्यकरणीय अनुष्ठान है, इसलिए १. आवनि ८३, ८४।
३. मतान्तर से कुछ विद्वान् वीरनिर्वाण के ९९३ वर्ष बाद स्वीकार करते हैं। २. नंदी चूर्णि पृ. ९।
४. वीरनि. पृ. ११०।
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