Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 462
________________ ४५० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विकलं प्रश्नवाक्यमेव उत्तरवाक्यरूपेणोच्चारणीयमिति । कथं ते तारारूपा देवा: चन्द्रसूर्यापेक्षया हीना अपि तुल्या अपि भवन्ति, अत्रार्थे कारणं ज्ञातुं प्रश्नयन्नाह - 'से केणटुणं' इत्यादि, 'सेकेण णं भंते ! एवं बुच्चइ अस्थिणं ० ' तत्केनार्थेन भदन्त ! एव मुच्यते - अस्ति खलु तारारूपाणां देवानां चन्द्राद्यपेक्षया हीनत्वमपि तुल्यत्वमपि, अर्थादत्र को हेतु रस्ति येन सर्वज्ञेनापि भवता एवं कथ्यते इति गौतमस्यावान्तरः प्रश्नः, भगवानाह - हे गौतम ! 'जहा जहाणं तेसि देवाणं' यथा यथा खलु तेषां देवानाम् तत्र यथा यथा - येन येन प्रकारेण तेषां ताराविमानाधिष्ठातृणां देवानां पूर्वस्मिन् भवे 'तवनियमवं पचेराणि उसियाई भवति' तपोनियमब्रह्मचर्याणि उच्छ्रितानि उत्कृष्टानि अधिकानीत्यर्थो भवति तत्र तपोऽनशनादिद्वादशप्रकरणम्, नियमः - शौचादिः, ब्रह्मचर्य - मैथुन विरतिः, अत्र शेषव्रतानामनुपदर्शनम् उत्कटव्रतधारिणां ज्योतिष्क देवे पूत्पादासंभवाद् उच्छ्रतानीत्युपलक्षणम् तेन यथा यथा अनुच्छ्रितानीत्यपि ज्ञातव्यमिति । यत् शब्दघटितवाक्यस्य तच्छब्द घटितवावचसापेक्षत्वा दुत्तरवाक्यमाह - ' तहा तहा णं' इत्यादि, 'तहा तहा णं तेसि देवाण एवं पण्णायए तं जहा हीन एवं समान घुति आदिवाला होना यह सब पूर्वभव में उपार्जित कर्मों के उदयानुसार ही होता है ! इस तरह हे गौतम ! जिस प्रकार से तुमने प्रश्न पूछा है उसका उत्तर वैसा ही हैं, 'से केणट्टेणं भंते! एवं बुच्चइ अस्थिणं' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि चन्द्रादिक देवों के विभवादिक की अपेक्षा तारारूप देवों के विभवादिक में हीनता एवं समानता है ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! जहा २ णं तेसि देवाणं' हे गौतम! जैसा २ उन देवों के पूर्वभव में 'तवनियमबंभचेराणि उसियाई भवति' तप, नियम, ब्रह्मचर्य अधिकरूप से सेवित होता है अर्थात् अनशन आदि १२ प्रकार के तपों का, शौचादिरूप नियमों का और मैथुन विरतिरूप ब्रह्मचर्य का अधिकरूप में या हीन रूप में सेवन होता है 'तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं पण्णायए तं जहा अणुत्तं वा तुल्लतं वा' वैसा २ उन देवों को ऐसा कहा जाता है कि ये चन्द्रादिक देवों के હોવું આ બધું પૂભવમાં સૉંચય કરેલાં કર્માંના ઉદયાનુસાર જ થાય છે આ રીતે હે गौतम ! ने रीते तमे प्रश्न पूछयो छे तेनेो श्वास पथ तेवा छे, 'से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ अस्थि णं' हे लहन्त ! खावु आप या अरणे हड्डी राडे । हो है यन्द्राहि દેવાની વિભવાર્દિકની અપેક્ષા તારારૂપ દેવેશના વિભવાદિકમાં હીનતા અને સમાનતા છે ? खाना उत्तरमा प्रलु उडे छे - 'गोयमा ! जहा २ णं तेसिं देवाणं' हे गौतम! वुवु ते हेवाना पूर्वलवमां 'तवनियमबंभचेराणि उसियाई भवंति' तप नियम, ब्रह्मयर्य अधि રૂપથી સેવાય છે—અર્થાત્ અનશન વગેરે ૧૨ પ્રકારના તપે!નુ શૌચાદિરૂપ નિયમાનુ' અને मैथुन विरति३५ ब्रह्मयर्यनु अधि ३५भां अथवा हीनश्यमां सेवन थाय छे. 'तहा २ णं सिं देवा एवं पण्णायए तं जहा अणुतं वा तुल्लतं वा' तेवा तेवा ते देवाने येवु જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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