Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 538
________________ ५२६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तानीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'तिष्णि छलुत्तराणिहिरयणसया सव्वग्गेणं पन्नता' त्रीणि षडुत्तराणि निधिरत्नशतानि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तानि - कथि तानि, कथं षडुत्तराणि त्रीणि शतानि निधिरत्नानि भवन्ति चेद् अत्रोच्यते - नवसंख्यकानि निधानानि तेषां चतुस्त्रिंशत्संख्यया गुणने ३०६ षडुत्तराणि त्रिंशच्छतसंख्यकानि भवन्तीति । सम्प्रति-निधिपतीनां कतिनिधानानि तेषां सत्ताकाले भोगभोग्यानि भवन्तीति दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह - 'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवेणं मंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'केवइया णिहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति' कियत्संख्यकानि निधिरत्नशतानि चक्रवर्त्त्यादीनां परिभोग्यतया प्रयोजने समुत्पन्ने सति 'हवं' इति शीघ्रमागच्छन्ति - निधिपतिसमीप मुपसर्पन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'जहण्णपर छत्तीसं' जधन्यपदे षट्त्रिंशत् जधन्यपदभाविनां चक्रवर्त्तिनां नवनिधानानि चतुर्गुणितानि यथोक्तसंख्याप्रदानीति । 'उक्कोसपए दोणि सतरा कुल कितने होते हैं ? यही बात गौतमस्वामीने पूछी है, इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! तिष्णि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में कुल निधानों की संख्या ३०६ होती है, यह इस प्रकार से होती है कि निधान नौ होते हैं इनमें ३४ का गुणा करने पर ३०६ हो जाते हैं । 'जंबूद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया णिहिरयणसया परिभोग ताए हव्वमागच्छंति' अब गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! इस जम्बू द्वीप नामके द्वीप में इन निधानों में से कितने निधान उनके चक्रवर्ती आदिकों के परिभोग में काम आते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं कोसपर दोणि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोग ताए हच्वमा गच्छंति' हे गौतम! इन निधानों में से कम से कम ३६ निधान और अधिक से अधिक दो सौ सत्तर निधान चक्रवर्ती आदिकों के काम में आते हैं । ३६ निधान काम आते हैं ऐसा નવનિધાન કુલ કેટલા હોય છે ? એજ વાત ગૌતમસ્વામીએ પૂછી છે આના જવાખમાં प्रभु ४ छे - 'गोयमा ! तिण्णि छलुत्तरा निहिरयणसया सव्वम्मेणं पण्णत्ता' हे गौतम! જમ્મૂદ્રીપ નામના દ્વીપમાં કુલ નિધાનાની સખ્યા ૩૦૬ હાય છે, આ એવી રીતે હાય छे } निधान नव होय छे तेने ३४ थी गुण तो उ०६ य लय छे. 'जंबूहीवेणं भंते! दीवे केवइया णिहिरयणसया परिभोगताए हव्वमागच्छंति' हवे गौतमस्वाभीये अथुने આ પ્રમાણે પૂછ્યું છે- હે ભદન્ત ! આ જમ્બુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં આ નિધાનામાંથી કેટલાં નિધાન તેમના ચક્રવર્તી આદિના પરિભાગમાં કામ આવે છે ? આના ઉત્તરમાં પ્રભુ हे छे - 'गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं उक्कोसपए दोणि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगताए हब्वमागच्छंति' हे गौतम! या निधानीमाथी गोछाभां मोछा उ निधान ने वधुभां વધુ ૨૭૦ નિધાન ચક્રવતી આદિકના કામમાં આવે છે ૩૬ નિધાન કામ આવે છે એવું જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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