Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू० ३४ जम्बूद्वीपइति नामकरणकारणनिरूपणम्
पुष्पैः सर्वदैव शोभमानाः 'जाव पिंडिममंजरीवडेंसगधरा' यावत् विण्डिममञ्जर्यवतंसकधराः यावत्पदात् 'णिच्च माइया णिच्चलवइया णिच्चं थवइया जाव णिच्चं कुसुमिय माझ्य लवइय rate गुलइय गोच्छइयमलिय जुवलिय विणमिय सुविभत्त' एतेषां ग्रहणं भवति, उक्तवर्णक विशिष्टाः जम्बूवृक्षाः, 'सिरिए अईव २ उवसोभेमाणा चिद्वेति' श्रिया - शोभया वनलक्ष्म्या वा अतीव - अतिशयेन उपशोभमानाः फलपुष्पादिभिर्विलसन्तस्तिष्ठन्ति इदं च सर्वदा कुसुमि तत्वादिकं विशेषणं जम्बूवृक्षाणा मुत्तरकुरुक्षेत्रापेक्षया ज्ञातव्यम् अन्यथा जम्बूवृक्षाणामाषाढमासे एव पुष्पफलादिमत्वेन नित्यमिति विशेषणानां प्रत्यक्षवाधप्रसंगात् एतावता जम्बूमिया' सर्वदा पुष्पों से भरे हुए रहते हैं क्यों कि यहाँ जम्बूवृक्षां की ही प्रधानता कही गई है दूसरे वृक्षों की नहीं उनकी तो गौणता ही जाननी चाहिये अन्यथा यदि अन्यवृक्षों के सद्भाव को लेकर इस द्वीप में जम्बूद्वीप पद की प्रवृत्ति का निमित्त माना जावे तो यह कथन असंगत ही हो जावेगा। 'जाव पिंडिममंजरि बड़े सगधरा सिरीए अईव २ उवसोभेमाणा चिद्वंति' यहां यावत्पद से 'णिचं माझ्या, णिच्चं लवइया, णिच्चं थवइया, जाव णिच्चे कुसुमियमाइय लवइ थवइय गुलइय गोच्छइ मलिय जुबलिय बिणमिय सुविभत्त' इस पाठ का संग्रह हुआ है-इन सब पूर्वोक्त पदों का व्याख्यान हम पहिले वनखण्ड के वर्णन में कर चुके हैं । अतः वहीं से इसे देखलेना चाहिये इस वर्णन से विशिष्ट जम्बूवृक्ष शोभा से अथवा वनलक्ष्मी से अत्यन्त शोभित होते रहते हैं यहां जो सर्वदा कुसुमितत्वादिक विशेषण जम्बूवृक्षों के वर्णन में दिये गये हैं वे उत्तर कुरु क्षेत्र गत जम्बूवृक्षों की अपेक्षा से ही जानना चाहिये, क्यों कि इतरक्षेत्र गत जम्बूवृक्ष आषाढ मास में ही पुष्पफलादि वाले होते हैं अतः नित्य आदि विशेषणों में प्रत्यक्ष बाधा का ४भ्यूवृक्ष 'णिच्चं कुसुमिया' सर्वा पुष्पोथी सहायेसां रहे छे रण में महीया मम्मूવૃક્ષેાની જ વિશેષતા કહેવામાં આવી છે-બીજા' વૃક્ષેાની નહીં તેમની તે ગૌણુતા જ જાણવી અન્યથા જો ખીજા વૃક્ષાના સદૂભાવનેે લઇને આ દ્વીપમાં જમ્મૂઢીપતા પટ્ટની પ્રવૃત્તિનુ निमित्त मानवामां आवे तो या उथन असंगत सामित थशे. 'जाव पिंडिम मंजरि - वडे सगधरा सिरीए अव २ उवसोभेमाणा चिट्ठति' सहीं यावत्पथी ' णिच्चं माझ्या, णिच्च लवइया, णिच्चं थवइया, जाव गिच्चं कुसुमिय माइय लवइय थवइय गुलइय गोच्छइय मलि यजुवलिय विणमिय सुविभत्त' ये चाहना संग्रह थयो छे. या सणां पूर्वोक्त यहोनु વ્યાખ્યાન અમે પ્રથમ વનખણ્ડના વનમાં કરી ગયા છીએ આથી તેમાંથી જ આ બધું જોઇ લેવા ભલામણ છે. આ વકર્થી વિશિષ્ટ જમ્મૂવૃક્ષ શાભાથી અથવા વનલક્ષ્મીથી અત્યન્ત શૈાભિત થતાં રહે છે. અત્રે જે સદ્યા કુસુમિતત્વાદિક વિશેષણ જમ્મૂવૃક્ષાના વનમાં આપવામાં આવ્યા છે. તેઓ ઉત્તરકુર ક્ષેત્રગત જ ખૂવૃક્ષની અપેક્ષાથી સમજવું કેમકે ઈતર ક્ષેત્રગત જ ભૂવૃક્ષ અષાઢમાસમાં જ પુષ્પકળાદિવાળા હાય છે આથી નિત્ય
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જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
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