Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 536
________________ ५२४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे द्विजयेषु वासुदेव स्वामिकाऽन्यना विजय चतुष्क वर्जित विजयसत्काष्टाविंशति चक्रवर्तिनः, भरतैरवतयोस्तु द्वौ चक्रवत्तिनौ इति पूर्वापरसंकलनया त्रिंशचक्रवर्तिनः, यदा तु महाविदेहक्षेत्रे उत्कृष्टपदेऽष्टाविंशति चक्रवर्तिनः प्राप्यन्ते तदा नियमतश्चतुर्णामर्द्धचक्रिणां संभवेन तन्निरुद्धक्षेत्रेषु चक्रवर्तिनामसंभवात्, चक्रवर्तिनामर्द्ध चक्रवर्तिनां च सहानवस्थानलक्षणविरोधात्, यत्र चक्रीन भवति तत्रार्धचक्रवर्ती, यत्र चार्टचक्रवर्तीन भवति तस्मिन् क्षेत्रे चक्रवर्तीति॥ ___सम्प्रति-बलदेवानर्धचक्रवर्तिनश्वाह-'बलदेवा' इत्यादि, 'बलदेवा तत्तियाचेव जत्तिया चकवट्टी' वलदेवा स्तावन्त एव यावन्त चक्रवर्तिनः यावत्प्रमाणका यदा चक्रवर्तिनो भवन्ति जम्बूद्वीपे तदा तावन्त स्तावत्प्रमाणका बलदेवा भवन्ति तावन्त एव बलदेवा जघन्यपदे उत्कृष्टपदे च, अयं भावः-यदा यत्र जघन्ये चत्वारश्चक्रिणस्तदा-तत्र जघन्यपदे चत्वारो बलदेवाः, यदा-यत्र चोत्कृष्टपदे त्रिंशचक्रवर्तिन स्तदा त्रिंशद्बलदेवा भवन्तीति । 'वासुदेवा वितत्तिया चेवत्ति' वासुदेवा अपि तावन्त एवेति बलदेव सहचारित्वात् बासुदेवानाम् अयवर्ती रहते कहे गयेहैं-ये इस प्रकार से हैं-३२ विजया में वासुदेव स्वाभाविक अन्यतर ४ विजयों को छोडकर २८ विजयों के २८ चक्रवर्ती और भरतक्षेत्र एवं ऐरवत क्षेत्र के दो चक्रवर्ती इस प्रकार मिलाकर ३० तीस चक्रवर्ती रहते -होते कहे गये हैं। जब महाविदेह में उत्कृष्ट पद में २८ चक्रवर्ती पाये जाते हैं तब नियम से चार अर्धचक्रियों के सद्भाव से उनके द्वारा निरुद्ध क्षेत्रों में चक्रवर्ती नहीं रहते हैं क्यों कि चक्रवर्ती और अर्ध-चक्रवर्ती इन दोनों का सहानवस्थान लक्षण विरोध हैं जहां चक्री होता है वहां अर्धचक्री नहीं होता है और जहां अर्धचक्री होता है वहां चक्री नहीं होता है। 'बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चकवट्टी' जितने चक्रवर्ती होते हैं उतने ही बलदेव होते हैं, अर्थात् जघन्य पद में चार बलदेव होते हैं और उत्कृष्ट पद में ३० बलदेव होते हैं 'वासुदेवा वि तत्तिया चेव' वासुदेव भी इसी प्रकार से होते हैं-क्योंकि ये वासुदेव बलदेव के આવ્યું છે અને ઉત્કૃષ્ટ પદમાં ૩૦ ચક્રવર્તી રહેવાનું કહેવામાં આવ્યું છે તેઓ આ પ્રમાણે છે-૩૨ વિજમાં વાસુદેવ સ્વાભાવિક અન્યતર ૪ વિજયને છોડીને ૨૮ વિજચેના ૨૮ ચક્રવતી અને ભરતક્ષેત્ર અને એરવતક્ષેત્રના ૨ ચક્રવતી એ રીતે મળીને ૩૦ ચકવતી રહેતાં હોવાનું કહેલ છે. જ્યારે મહાવિદેહમાં ઉત્કૃષ્ટ પદમાં ૨૮ ચક્રવતી લેવામાં આવે છે ત્યારે નિયમથી ચાર અર્ધચક્રિઓના સદૂભાવથી તેમના દ્વારા નિરૂદ્ધ શ્રેત્રમાં ચકવતી રહેતાં નથી કારણ કે ચક્રવર્તી અને અર્ધચક્રવતી એ બંનેને સહાનવસ્થાન લક્ષણ વિરાધ છે, જ્યાં ચક્રી હોય છે ત્યાં અર્ધચક્રી હતા નથી અને જ્યાં यही डाय छ त्यो यी हात नथी. 'बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चक्कवट्टी' २८i ચક્રવતી હોય છે તેટલાં જ બળદેવ હોય છે અર્થાત્ જઘન્યપદમાં ચાર બળદેવ હોય मनट पहम 30 म हाय छे. 'वासुदेवा तत्तिया चेव' वासुदेव ५ ॥ પ્રકારે જ હોય છે, કારણ કે આ વાસુદેવ બળદેવના સહચારી હોય છે. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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