Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 488
________________ ४७६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सुनमितं सम्यगधोमुखीकृतं सुजातं शोभनतया जातम्, आस्फोटितं भूमौ ताडितं लागुलं पुच्छं यैस्ते तथा तेषाम् । तथा-'वइरामयणखाणं' वज्रमयनखानाम्-वज्रतुल्यनखानाम् 'वइरामयदाढाणं' वज्रमयदंष्ट्राणां वज्रसदृश दंष्ट्रावताम्, 'वइरामय दंताणे' वज्रमय दन्तानाम् 'तवणिज्जजीहाणं' तपनीय जिह्वानाम् सुवर्णसदृश पीत जिह्यानाम्, 'तवणिज्ज तालुयाणं तपनीयतालुकानाम्, 'तवणिज्जजोत्तग सुजोइयाणं तपनीय योत्रक सुयोजितानाम्, 'कामगमाणं' कामगमानाम्, तत्र कामः स्वेच्छा तेन गमो गमनं येषां ते तथा तादृशानाम्, 'पीइगमाण' प्रीतिगमानाम्, तत्र प्रीतिचित्तस्योल्लास विशेषस्तेन गमो गमनं येषां, ते तथा तथाविधानाम् 'मणोगमाणं' मनोगमानाम्, तत्र मनोवद् गमो गमनं वेगवद् येषां ते तथा तादृशानाम् 'मणोरमाणं' मनोरमाणां मनोहराणाम् 'अमियगईणं' अमितगतीनाम् अत्यधिक लगती है ये कभी २ उस पूंछ को नीचे भी झुका लेते हैं और वह इतनी अधिक नीचे झुक जाती है कि उससे पृथ्वी का भी स्पर्श होने लग जाता हैं । 'वइरामय खाणं' इनके नख ऐसे कठोर होते हैं कि मानों ये वज्र के ही बने हुए हैं वइरा मयदाढाणं' इनकी दाढ़े भी ऐसी मजबूत होती हैं कि मानों ये भी वज्र को ही बनी हुई हैं । 'वइरामयदंताणं' दांत भी इनके इतने अधिक कठोरता लिये हुए होते हैं कि मानों ये वज्र के ही बने हों। 'तवणिज जीहाणं' इनकी जिहवा सुवर्ण के जैसी पीतवर्णवाली होती है 'तवणिज्जतालयाणं' ताल भी इनका तप नीय सुवर्ण के जैसा लाल होता है 'तवणिजजोत्तगसुजोइयाणं' सुवर्ण योत्रक मुखरस्सी-जोतों से इनका मुख युक्त रहता है 'कामगमाणं' इनका गमन इच्छा नुसार होता है 'पीइ गमाणं' चित्त के उल्लास के अनुसार इनकी चाल होती है 'मणोगमाणं' मन की गति के समान इनकी गति होती है 'मणोरमाणं' ये बडे ही सुन्दर होते हैं 'अमियगईणं' इनकी गति का कोई पार नहीं पा सकता है છે પરંતુ તેને અગ્રભાગ નીચેની તરફ વળેલો રહે છે આથી તે જોવામાં ઘણી સારી સહામણી લાગે છે. તેઓ કદી કદી તે પૂંછડીને નીચે પણ નમાવી લે છે અને તે એટલી qधारे नाये 4जी नय छ ते पृथ्वीन ५४ २५० ४२ छे. 'वइरामय णखाणं' मेमना नम मे तो ४४५५ डाय छ ? on ते १४ मन्या हाय ! 'वइरामयदंताणं' in પણ તેમના એટલા અધિક કઠેરતાવાળા હોય છે કે જાણે વજીના ન બન્યા હોય! 'तवणिज्जजीहाणं' मेमनी म सुवर्ण वी पी २ जी डाय छे. 'तवणिज्जतालुयाणं' ताण ५५५ मे मनु तपासा सुपना साराय छे. 'तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं' अपनी यात्र-भु॥२२सी-संगामथी मनु भुम युक्त डाय छे. 'कामगमाणं' मेमनु समान २४ानुसा२ थाय छ, 'पीइगमाणं' चित्तन सास अनुसार समनी या डाय छ 'मणोरमाणं' भननी आतिनी रेभ. मेमनी गति हाय छे. 'मणोगमाणं' ती घर सुन्दर हाय छ, 'अमियगइणं' मेमनी तिने ३४ पा२ पाभी न श की सत्यपि જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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