Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 495
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू०२९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४८३ याणं" तपनीय योत्रकसुयोजितानाम् 'कामगमाणं' कामगमानाम्, कामः स्वेच्छा तेन गमोगमनं येषां तथाविधानाम् 'पीइगमाणं' प्रीतिगमानाम्, प्रीतिः- मुखं तजनकं गमनं येषां तथाविधानाम् 'मणोगमाणं' मनोगमानाम्-मनोवद् वेगशालिनामित्यर्थः, 'मणोरमाणं' मनोरमाणाम् -'मणोहराण' मनोहराणाम, 'अमियगईणं' अमितगतीनाम् 'अमिय बलवीरियपुरिसकारपरकमाणं' अमितबलवीर्यपुरुषकारपराक्रमाणाम्, 'तवणिज्जजीहाणं' इत्यारभ्य 'अमियबलवीरिय' इत्यन्तनवानामपि विशेषणानामर्थाः पूर्वबाहाप्रकरणत एव ज्ञातव्याः विस्तरभयानात्र पुनलिखिताः। 'महया गंभीर गुलुगुलाइतरवेणं' महता गंभीरगुलगुलायितरवेणशब्देन 'महुरेणं' मधुरेण-श्रोत्रप्रियेण 'मणहरेणं' मनोहरेण मनस आनन्दजनकेन 'पूरेता' पूरयन्ति 'अंबरं दिसाय सोभयंता' अम्बरम्-आकाशम्, दिशा:-पूर्वादिकाश्च शोभयन्ति रत्नमय है, 'तवणिजजीहाणं' इनकी जिहा तपनीय सुवर्णमय है 'तवणिजतालुयाण' इनका तालु तपनीय प्लुवर्णमय है 'कामगमाणं' ये अपनी इच्छा के अनुसार गमनक्रियारत हैं, 'पीइगमाण' इनका गमन सुख जनक है "मणोगमाणं' मनकी गति के अनुसार इनका गमन बहुत वेगशाली है 'मणोरमाणं' ये सब के सब गजराज बडे मनोरम है 'अमियगईणं' इनकी गति अमित है 'अमियबलवीरियपुरिसक्कारपरकमाणं' बल, वीर्य पुरुषकार और पराक्रम भी इनका अपार है 'तवणिजजीहाणं' इनकी तपनीय सुवर्ण के जैसी लाल जिहुवा है, 'तवणिज जीहाणं' से लेकर 'अमियबलवीरिय' यहां तक के नौ पदों का अर्थ हम पूर्व बाहा प्रकरण में लिख चुके है सो वहां से जानलेना चाहिये 'महया गंभीर गुलगुलाइत रवेणं' ये जो चिंघाडते हैं और उस चिंधाड से जो शब्द निकलता है वह बहुत ही गंभीर होता है तथा-गुलगुलायित होता 'महरेण' मधुर होता है-कर्णेन्द्रिय के उद्वेग जनक नही होता है तथा 'मणहरेणं' तपनीय सुपण भय छ 'तवणिज्ज तालुयाण' मेमना mai aideu सुपए व छ, 'तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं' से तपनीय यात्री सुयोलत छ. 'कामगमाण' त्यो पातानी ४२छानुसार मानठियारत छ, 'पीइगमाणं' से मनु गमन सुमन छ 'मणोगमाणं' भननी गति अनुसार मनु मन धातु छ. 'मणोरमाणं' मा मार २१ । मनोरम छ 'अमियगईणं' भनी गतिमभितछे, 'अमियबलवीरिय पुरसक्कारपरक्कमाणं' मण, वीर्य, ५३०४२ अने ५२।४ ५ सेमना अपार छे. 'तवणिज्जजीहाणं' मेमनी तपास सोना वी सास छ. 'तवणिज्ज जीहाणं' थी 'अमियबलवीरीय' અહીં સુધીના નવ પદોને અર્થ અમે પૂર્વ બાહા પ્રકરણમાં લખી ચૂક્યા છીએ તે તેમાંથી Mणी से नये 'महया गंभीर गुलगुलाइतरवेण' तेरे Aधा छ म त यिधाथी २ श६ Cisa छ ते 1 मार डाय छ, तथा गुस्सायित हाय छे. 'महुरेण' मधुर डाय छ. द्रिय व पाया जात नयी तथा 'मणहरेण' भनने ५५ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા

Loading...

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567