Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
था? उन्होंने तेरे लिए कितने कष्ट सहन किये थे! आवश्यकचूर्णि, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र प्रभृति जैन ग्रन्थों में उसका अपर नाम 'अशोकचन्द्र' भी मिलता है। चेलना भगवान् महावीर के प्रति अत्यन्त निष्ठावान् थी। चेलना के पूज्य पिता राजा 'चेटक' महावीर के परम उपासक थे। इसलिए अजातशत्रु कूणिक जैन था। यह पूर्ण रूप से स्पष्ट है।
कूणिक की रानियों में पद्मावती,“ धारिणी और सुभद्रा प्रमुख थीं।आवश्यकचूर्णि में आठ कन्याओं के साथ उसके विवाह का वर्णन है पर वहाँ आठों कन्याओं के नाम नहीं हैं। महारानी पद्मावती का पुत्र उदायी था, वह मगध के राजसिंहासन पर आसीन हुआ था। उसने चम्पा से अपनी राजधानी हटा कर पाटलीपुत्र में स्थापित की थी।१२ भगवान् महावीर
__जैन इतिहास में भगवान् महावीर के भक्त अनेक सम्राटों का उल्लेख है, जो महावीर के प्रति अनन्य श्रद्धा रखते थे। आठ राजाओं ने तो महावीर के पास आर्हती दीक्षा भी स्वीकार की थी। किन्तु कूणिक एक ऐसा सम्राट् था, जो प्रतिदिन महावीर के समाचार प्राप्त करता था और उसके लिए उसने एक पृथक् व्यवस्था कर रखी थी। दूसरे सम्राटों में यह विशेषता नहीं थी। इन सभी से यह सिद्ध है कि राजा कूणिक की महावीर के प्रति अपूर्व भक्ति थी।
भगवान् महावीर अपने शिष्य-समुदाय के साथ चम्पा नगरी में पधारते हैं। उनके तेजस्वी शिष्य कितने ही आरक्षकदल के अधिकारी थे तो कितने ही राजा के मंत्री-मण्डल के सदस्य थे, कितने ही राजा के परामर्श-मण्डल के सदस्य थे। सैनिक थे, सेनापति थे। यह वर्णन यह सिद्ध करता है कि बुभुक्षु नहीं किन्तु मुमुक्षु श्रमण बनता है। जिस साधक में जितनी अधिक वैराग्य भावना सुदृढ़ होती है, वह उतना ही साधना के पथ पर आगे बढ़ता है। "नारि मुई घर सम्पति नासी, मूंड मुंडाय भये संन्यासी" यह कथन प्रस्तुत आगम को पढ़ने से खण्डित होता है। महावीर के शासन में ऐरे-गेरे व्यक्तियों की भीड़ नहीं थी पर तेजस्वी और वर्चस्वी व्यक्तियों का साम्राज्य था, जो स्वयं साधना के सच्चे पथिक थे। वे ज्ञानी भी थे, ध्यानी भी थे, लब्धिधारी भी थे और विविध शक्तियों के धनी भी थे। ___भगवान् महावीर के चित्ताकर्षक व्यक्तित्व को विविध उपमाओं से मण्डित कर हूबहू शब्द चित्र उपस्थित किया है, विराट् कृतित्व के धनी का व्यक्तित्व यदि अद्भुत नहीं है, तो जन-मानस पर उसका प्रभाव नहीं पड़ सकता। यही कारण है कि विश्व के सभी चिन्तकों ने अपने महापुरुष को सामान्य व्यक्तियों से पथक रूप में विशिष्ट रूप से चित्रित किया है। तीर्थकर विश्व में सबसे महान् अनुपम शारीरिक-वैभव से विभूषित होते हैं। उनके शरीर में एक हजार आठ प्रशस्त लक्षण बताये गये हैं। डा. विमलचरण लॉ ने लिखा है-बौद्ध साहित्य बुद्ध के शरीरगत लक्षणों की संख्या बाईस बताते हैं, वहाँ औपपातिक सूत्र में महावीर के शरीरगत लक्षणों की संख्या आठ हजार बताई है। डॉ. विमलचरण लॉ को यहाँ पर संख्या के सम्बन्ध में भ्रान्ति हुई है। प्रस्तुत आगम में "अट्ठसहस्स" यह पाठ है और टीकाकार ने 'अष्टोत्तर सहस्रम्' लिखा है। जिसका अर्थ एक
-निरयावली, सूत्र ८
४५. आवश्यकचूर्णि उत्तरार्ध ४६. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र ४७. आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध पत्र-१६४ ४८. तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई नामं देवी होत्था। ४९. उववाई सूत्र १२ ५०. औपपातिक सूत्र-५५ ५१. कुणियस्स अट्ठहिं रायवरकन्नाहिं समं विवाहो कतो।
आवश्यकचूर्णि–पत्र-१७७ ५३. औपपातिकसूत्र, पृ. १२, अट्ठसहस्सवरपुरिसलक्खणधरे । 48. Some Jaina Canonical Sutras, P. 73
[२२]
- आव. चूर्णि उत्त. पत्र-१६७
५२.