Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१२
औपपातिकसूत्र चारों ओर घुमाया, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया महाराज की जैसी आज्ञा।
सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति-व्यापृत-महावत को बुलाया। बुलाकर उससे कहा—देवानुप्रिय! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक के लिए प्रधान, उत्तम हाथी को सजाकर शीघ्र तैयार करो। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराओ। फिर मुझे आज्ञा-पालन हो जाने की सूचना करो।
. ४२- तए णं से हस्थिवाउए बलवाउयस्स एयमढें सोच्चा आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं छेयायरियउवएसमइकप्पणाविकप्पेहिं सुणिउणेहिं उजलणेवत्थहत्थपरिवत्थियं, सुसजं धम्मियसण्णद्धबद्धकवइयउप्पीलियकच्छवच्छगेवेयबद्धगलवर-भूसणविरायंतं, अहियतेयजुत्तं सललियवरकण्णपूरविराइयं, पलंबओचूलमहुयरकयंधयारं, चित्तपरिच्छे-अपच्छयं, पहरणावरणभरियजुद्धसज्जं, सच्छत्तं, सज्झयं, सघंट, सपडागं, पंचामेलयपरिमंडियाभिरामं,
ओसारियजमलजुयलघंटे, विजुपिणद्ध व कालमेहं, उप्पाइयपव्वयं व चंकमंतं, मत्तं, महामेहमिव गुलगुलंतं, मणपवणजइणवेगं, भीमं, संगामियाओजं आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेइ, सण्णाहेत्ता जेणेव बलवाउए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ।
___४२- महावत ने सेनानायक का कथन सुना, उसका आदेश विनय-सहित स्वीकार किया। आदेश स्वीकार कर उस महावत ने, कलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने से जिसकी बुद्धि विविध कल्पनाओं तथा सर्जनाओं में अत्यन्त निपुण-उर्वर थी, उस उत्तम हाथी को उज्ज्वल नेपथ्य-चमकीले वस्त्र, वेषभूषा आदि द्वारा शीघ्र सजा दिया। उस सुसज्ज हाथी का धार्मिक उत्सव के अनुरूप शृंगार किया, उसके कवच लगाया, कक्षा—बाँधने की रस्सी को उसके वक्षःस्थल से कसा, गले में हार तथा उत्तम आभूषण पहनाये, इस प्रकार उसे सुशोभित किया। वह बड़ा तेजोमय दीखने लगा। सुललित लालित्ययुक्त या कलापूर्ण कर्णपूरों कानों के आभूषणों द्वारा उसे सुसज्जित किया। लटकते हुए लम्बे झूलों तथा मद की गंध से एकत्र हुए भौंरों के कारण वहाँ अंधकार जैसा प्रतीत होता था। झूल पर बेल बूंटे कढ़ा प्रच्छद—छोटा आच्छादक वस्त्र डाला गया। शस्त्र तथा कवचयुक्त वह हाथी युद्धार्थ सज्जित जैसा प्रतीत होता था। उसके छत्र, ध्वजा, घंटा तथा पताका ये सब यथास्थान योजित किये गये। मस्तक को पाँच कलंगियों से विभूषित कर उसे सुन्दर बनाया। उसके दोनों ओर दोनों परिपार्थों में दो घंटियां लटकाईं। वह हाथी बिजली सहित काले बादल जैसा दिखाई देता था। वह अपने बड़े डीलडौल के कारण ऐसा लगता था, मानो अकस्मात् कोई चलता-फिरता पर्वत उत्पन्न हो गया हो। वह मदोन्मत्त था। बड़े मेघ की तरह वह गुलगुल शब्द द्वारा अपने स्वर में मानो गरजता था। उसकी गति मन तथा वायु के वेग को भी पराभूत करने वाली थी। विशाल देह तथा प्रचंड शक्ति के कारण वह भीम भयावह प्रतीत होता था। उस संग्राम योग्य–वीरवेशान्वित आभिषेक्य हस्तिरत्न को महावत ने सन्नद्ध किया सुसज्जित कर तैयार किया। उसे तैयार कर घोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओं से परिगठित सेना को तैयार कराया। फिर वह महावत, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया और आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दी।