Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ ११६ औपपातिकसूत्र गौतम! कई देव होते हैं, कई देव नहीं होते हैं। ६९-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगइया देवे सिया, अत्थेगइया णो देवे सिया ? गोयमा ! जे इमे जीवा गामागर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, अकामबंभचेरवासेणं, अकामअण्हाणग-सीयायवदंसमसग-सेय-जल्ल-मल्ल-पंकपरितावेणं अप्पतरो वा भुजतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, अप्पतरो वा भुजतरो वा कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए पण्णत्ते। तेसिं णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। अस्थि णं भंते ! तेसिं देवाणं इड्डी इ वा, जुई इ वा, जसे इ वा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा? हंता अत्थि। ते णं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा ? णो इणढे समढे। ६९- भगवन्! आप किस अभिप्राय से ऐसा कहते हैं कि कई देव होते हैं, कई देव नहीं होते ? . गौतम! जो जीव मोक्ष की अभिलाषा के बिना या कर्म-क्षय के लक्ष्य के बिना ग्राम, आकर-नमक आदि के उत्पत्तिस्थान, नगर जिनमें कर नहीं लगता हो ऐसे शहर, खेट–धूल के परकोटों से युक्त गाँव, कर्बट अति साधारण कस्बे, द्रोणमुख–जल-मार्ग तथा स्थल-मार्ग से युक्त स्थान, मडंब आस-पास के गांव रहित बस्ती, पत्तन–बन्दरगाह अथवा बड़े नगर, जहाँ या तो जल मार्ग से या स्थल मार्ग से जाना सम्भव हो, आश्रम तापसों के आवास, निगम व्यापारिक नगर, संवाह-पर्वत की तलहटी में बसे गाँव, सनिवेश झोंपड़ियों से युक्त बस्ती अथवा सार्थवाह तथा सेना आदि के ठहरने के स्थान में तृषा-प्यास, क्षुधा-भूख, ब्रह्मचर्य, अस्नान, शीत, आतप, डांसमच्छर. स्वेद-पसीना. जल्ल रज. मल्ल मैल. जो सखकर कठोर बन गया हो.पंक मैल जो पसीने से गीला बना हो—इन परितापों से अपने आपको थोडा या अधिक क्लेश देते हैं. कछ समय तक अपने आप को क्लेशित कर मृत्यु का समय आने पर देह का त्यागकर वे वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी लोक में देव के रूप में पैदा होते हैं। वहाँ उनकी अपनी विशेष गति, स्थिति तथा उपपात होता है। भगवन्! वहाँ उन देवों की स्थिति आयु कितने समय की बतलाई गई है ? गौतम! वहाँ उनकी स्थिति दश हजार वर्ष की बतलायी गई है। भगवन् ! क्या उन देवों की ऋद्धि-समृद्धि, परिवार आदि सम्पत्ति, द्युति—कांति, यश-कीर्ति, बल—शरीरनिष्पन्न शक्ति, वीर्य-जीव-निष्पन्न प्राणमयी शक्ति, पुरुषाकार–पुरुषाभिमान, पौरुष की अनुभूति या पुरुषार्थ तथा पराक्रम ये सब अपनी-अपनी विशेषता के साथ होते हैं ? हाँ, गौतम ऐसा होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242