Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अम्बड के उत्तरवर्ती भव
१४३
लिए नहीं।
अम्बड को मागधमान के अनुसार एक आढक पानी लेना कल्पता है। वह भी बहता हुआ, यावत् दिया हुआ ही कल्पता है, बिना दिया नहीं। वह भी स्नान के लिए कल्पता है, हाथ पैर, चरू, चमस धोने के लिए या पीने के लिए नहीं।
९९- अम्मडस्स णो कप्पइ अण्णउत्थिया वा, अण्णउत्थियदेवयाणि वा, अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाई वंदित्तए वा, णमंसित्तए वा, जाव (सक्कारित्तए वा, सम्माणित्तए वा,) पज्जुवासित्तए वा, णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाई वा।
९९- अर्हत् या अर्हत्-चैत्यों के अतिरिक्त अम्बड को अन्ययूथिक निर्ग्रन्थ-धर्मसंघ के अतिरिक्त अन्य संघों से सम्बद्ध परुष. उनके देव. उन द्वारा परिगहीत स्वीकृत चैत्य उन्हें वन्दन करना, नमस्कार करना, (उनका सत्कार करना, सम्मान करना या) उनकी पर्युपासना करना नहीं कल्पता। अम्बड के उत्तरवर्ती भव
१००- अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति?
गोयमा! अम्मडे णं परिव्वायए उच्चावएहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई समणोवासयपरियायं पाउणिहिति, पाउणिहित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता, आलोइयपडिक्कंते, समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववजिहिति। तत्थ णं अत्यंगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं अम्मडस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई।
१००- भगवन्! अम्बड परिव्राजक मृत्यु-काल आने पर देह-त्याग कर कहाँ जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा?
गौतम! अम्बड परिव्राजक उच्चावच-उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट विशेष-सामान्य शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण विरति, प्रत्याख्यान त्याग एवं पोषधोपवास द्वारा आत्मभावित होता हुआ—आत्मोन्मुख रहता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक-पर्याय-गृहि-धर्म या श्रावक-धर्म का पालन करेगा। वैसा कर एक मास की संलेखना और साठ भोजन—एक मास का अनशन सम्पन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर, मृत्यु-काल आने पर वह समाधिपूर्वक देह-त्याग करेगा। देह-त्याग कर वह ब्रह्मलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ अनेक देवों की आयु-स्थिति दश सागरोपम-प्रमाण बतलाई गई। अम्बड देव का भी आयुष्य दश सागरोपम-प्रमाण होगा। ... १०१-से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजिहिति ?
१०१- भगवन् ! अम्बड देव अपना आयु-क्षय, भव-क्षय, स्थिति-क्षय होने पर उस देवलोक से व्यवन कर कहाँ जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा? १. सूत्र संख्या २ के विवेचन में चैत्य की विस्तृत व्याख्या है, जो द्रष्टव्य है।