Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 209
________________ औपपातिकसूत्र १४६- भगवन् ! काय-योग को प्रयुक्त करते हुए क्या वे औदारिक-शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैंऔदारिक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या औदारिक-मिश्र औदारिक और कार्मण —दोनों शरीरों से क्रिया करते हैं? क्या वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय मिश्रकार्मण-मिश्रित या औदारिक मिश्रित वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक शरीर से क्रिया करते हैं? क्या आहारक मिश्र औदारिक मिश्रित आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या कार्मण शरीर से क्रिया करते हैं ? अर्थात् सात प्रकार के काययोग में से किस काययोग का प्रयोग करते हैं ? ___गौतम! वे औदारिक-शरीर-काय-योग का प्रयोग करते हैं, औदारिक-मिश्र शरीर से भी क्रिया करते हैं । वे वैक्रिय शरीर से क्रिया नहीं करते। वैक्रिय-मिश्र शरीर से क्रिया नहीं करते। आहारक शरीर से क्रिया नहीं करते। आहारक-मिश्र शरीर से भी क्रिया नहीं करते । अर्थात् इन कायिक योगों का वे प्रयोग नहीं करते। पर औदारिक तथा औदारिक-मिश्र के साथ-साथ कार्मण-शरीर-काय-योग का भी प्रयोग करते हैं। ___पहले और आठवें समय में वे औदारिक शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं। दूसरे, छठे और सातवें समय में वे औदारिक मिश्र शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं। तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में वे कार्मण शरीर-काययोग का प्रयोग करते हैं। समुद्घात के पश्चात् योग-प्रवृत्ति १४७– से णं भंते ! तहा समुग्घायगए सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिव्वाइ, सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ? णो इणढे समढे। से णं तओ पडिणियत्तइ, पडिणियत्तिता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ, वयजोगं पि जुंजइ, कायजोगं पि जुंजइ। १४७– भगवन् ! क्या समुद्घातगत—समुद्घात करने के समय कोई सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परिनिवृत्त होते हैं—परिनिर्वाण प्राप्त करते हैं। सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतमऐसा नहीं होता। वे उससे—समुद्घात से वापस लौटते हैं । लौटकर अपने ऐहिक मनुष्य शरीर में आते हैं—अवस्थित होते हैं। तत्पश्चात् मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग का भी प्रयोग करते हैं, मानसिक, वाचिक एवं कायिक क्रिया भी करते हैं। १४४- मणजोगं जुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुंजइ ? मोसमणजोगं जुंजइ ? सच्चामोसमणजोगं जुंजइ ? असच्चामोसमणजोगं जुंजइ ? गोयमा! सच्चमणजोगं जुंजइ, णो मोसमणजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ। १४८- भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करते हुए क्या सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या मृषा-असत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या सत्य-मृषा सत्य-असत्य मिश्रित (जिसका कुछ अंश सत्य हो, कुछ असत्य हो ऐसे) मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या अ-सत्य-अ-मृषा—न सत्य, न असत्य–व्यवहार मनोयोग का

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