Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 210
________________ योग-निरोधः सिद्धावस्था १६७ उपयोग करते हैं ? गौतम! वे सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं। असत्य मनोयोग का उपयोग नहीं करते। सत्य-असत्यमिश्रित मनोयोग का उपयोग नहीं करते। किन्तु अ-सत्य-अ-मृषा-मनोयोग–व्यवहार मनोयोग का वे उपयोग करते हैं। विवेचन-मन की प्रवृत्ति मनोयोग है। द्रव्य-मनोयोग तथा भाव-मनोयोग के रूप में वह दो प्रकार का है। मन की प्रवृत्ति हेतु मनोवर्गणा के जो पुद्गल संगृहीत किये जाते हैं, उन्हें द्रव्य-मनोयोग कहा जाता है। उन गृहीत पुद्गलों के सहयोग से आत्मा जो मननात्मक प्रवृत्ति; वर्तमान, भूत, भविष्य आदि के सन्दर्भ में चिन्तन, मनन, विमर्श आदि करती है, उसे भाव-मनोयोग कहा जाता है। केवली में इसका सद्भाव नहीं रहता। जैसा प्रस्तुत सूत्र में संकेतित हुआ है, मनोयोग चार प्रकार का है १. सत्य मनोयोग, २. असत्य मनोयोग, ३. सत्य-असत्य-मिश्रित मनोयोग तथा ४. व्यवहार मनोयोग मन की वैसी व्यावहारिक आदेश, निर्देश आदि से सम्बद्ध प्रवृत्ति, जो सत्य भी नहीं होती, असत्य भी नहीं होती। १४९- वयजोगं जुंजमाणे किं सच्चवइजोगं जुंजइ ? मोसवइजोगं जुंजइ ? सच्चामोसवइजोगं जुंजइ ? असच्चामोसवइजोगं जुंजइ ? __ गोयमा ! सच्चवइजोगं जुंजइ, णो मोसवइजोगं जुंजइ, णो सच्चामोसवइजोगं जुंजइ, असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ। १४९- भगवन्! वाक्योग को प्रयुक्त करते हुए वचन-क्रिया में प्रवृत्त होते हुए क्या सत्य वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? क्या मृषा-वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? क्या सत्य-मृषा-वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? क्या असत्य-अमृषा-वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? गौतम! वे सत्य-वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं। मृषा-वाक्-योग को प्रयुक्त नहीं करते। न वे सत्य-मृषावाक्-योग को ही प्रयुक्त करते हैं। वे असत्य-अमृषा-वाक्-योग-व्यवहार-वचन-योग को भी प्रयुक्त करते हैं। १५०- कायजोगं जुंजमाणे आगच्छेज वा, चिटेज वा, णिसीएज्ज वा, तुयटेज वा, उल्लंघेज वा, पलंघेज वा, उक्खेवणं वा, अवक्खेवणं वा, तिरियक्खेवणं वा करेजा पाडिहारियं वा पीढफलगसेज्जासंथारगं पच्चप्पिणेजा। ___ १५०- वे काययोग को प्रवृत्त करते हुए आगमन करते हैं, स्थित होते हैं ठहरते हैं, बैठते हैं, लेटते हैं, उल्लंघन करते हैं लांघते हैं, प्रलंघन करते हैं विशेष रूप से लांघते हैं, उत्क्षेपण करते हैं हाथ आदि को ऊपर करते हैं, अवक्षेपण करते हैं—नीचे करते हैं तथा तिर्यक् क्षेपण करते हैं-तिरछे या आगे-पीछे करते हैं। अथवा ऊँची, नीची और तिरछी गति करते हैं। काम में ले लेने के बाद प्रातिहारिक वापस लौटाने योग्य उपकरण-पट्ट, शय्या, संस्तारक आदि लौटाते हैं। योग-निरोध : सिद्धावस्था १५१- से णं भंते ! तहा सजोगी सिज्झइ, जाव (बुज्झइ, मुच्चइ, परिणिव्वाइ, सव्वदुक्खाणं) अंतं करेइ ?

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