Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 214
________________ सिद्धों का परिवास लंतगस्स, महासुक्कस्स, सहस्सारस्स, आणयस्स, पाणयस्स, आरणस्स) अच्चुयस्स गेवेज्जविमाणाणं अणुत्तर विमाणाणं । १६१ - भगवन् ! क्या सिद्ध सौधर्म कल्प (देवलोक) के नीचे निवास करते हैं ? नहीं ऐसा अभिप्राय ठीक नहीं है। ईशान, सनत्कुमार, (माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण एवं) अच्युत तक, ग्रैवेयक विमानों तथा अनुत्तर विमानों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही समझना चाहिए । अर्थात् इनके नीचे भी सिद्ध निवास नहीं करते। १६२— अत्थि णं भंते ! ईसीपब्भाराए पुढवीए अहे सिद्धा परिवसंति ? णो इट्ठे समट्ठे । १७१ १६२ – भगवन् ! क्या सिद्ध ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ? नहीं, ऐसा अभिप्राय ठीक नहीं है। १६३ – से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पहार पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उड्डुं चंदिमसूरियग्गहगणणक्खत्त-ताराभवणाओ बहूइं जोयणाइं, बहूइं जोयणसयाई, बहूई जोयणसहस्साईं, बहूई जोयणसयसहस्साई, बहूओ जोयणकोडीओ, बहूओ जोयणकोडाकोडीओ उड्डतरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलंतगमहासुक्कसहस्सारआणयपाणयआरणअच्चुए तिण्णि य अट्ठारे गेविज्जविमाणावाससए वीईवइत्ता विजय-वेजयंत- जयंत अपराजिय- सव्वट्टसिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्वउवरिल्लाओ थ्रुभियग्गाओ दुवालसजोयणाई अबाहाए एत्थ णं ईसीपब्भारा णाम पुढवी पण्णत्ता, पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोण्णि य अउणापण्णे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिरएणं । १६३ – भगवन् ! फिर सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा भूमि के बहुसम रमणीय भूभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र तथा तारों के भवनों से बहुत योजन, बहुत सैकड़ों योजन, बहुत हजारों योजन, बहुत लाखों योजन, बहुत करोड़ों योजन तथा बहुत क्रोडाक्रोड योजन से ऊर्ध्वतर—बहुत ऊपर जाने पर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्प तथा तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमान आवास से भी ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध महाविमान के सर्वोच्च शिखर के अग्रभाग से बारह योजन के अन्तर पर ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी कही गई है। वह पृथ्वी पैंतालीस लाख योजन लम्बी तथा चौड़ी है। उसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनचास योजन से कुछ अधिक है। १६४ — ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, तयाणंतरं च णं मायाए मायाए परिहायमाणी सव्वेसु चरिंमपेरंतेसु मच्छियपत्ताओ तणुयतरा अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ता ।

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