Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 207
________________ १६४ औपपातिकसूत्र ____ १३९- गौतम! इस अभिप्राय से यह कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्णरूप से वर्ण आदि को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता। १४०- सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता, समणाउसो! सव्वलोयं पि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठति। १४०- आयुष्मान् श्रमण! वे पुद्गल इतने सूक्ष्म कहे गये हैं। वे समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित रहते हैं। केवली-समुद्घात का हेतु १४१- कम्हा णं भंते ! केवली समोहणंति ? कम्हा णं केवली समुग्घायं गच्छंति ? गोयमा ! केवली णं चत्तारि कम्मंसा अपलिक्खीणा भवंति, तं जहा—१. वेयणिजं, २. आउयं, ३. णामं, ४. गोत्तं। सव्वबहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ। सव्वत्थोए से आउए कम्मे भवइ। विसमं समं करेइ बंधणेहिं ठिईहि य, विसमसमकरणयाए बंधणेहिं ठिईहि य। एवं खलु केवली समोहणंति, एवं खलु केवली समुग्घायं गच्छंति। १४१- भगवन् ! केवली किस कारण समुद्घात करते हैं—आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं ? गौतम! केवलियों के वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र—ये चार कर्मांश अपरिक्षीण होते हैं—सर्वथा क्षीण नहीं होते, उनमें वेदनीय कर्म सबसे अधिक होता है, आयुष्य कर्म सबसे कम होता है। बन्धन एवं स्थिति द्वारा विषम कर्मों को वे सम करते हैं। यों बन्धन और स्थिति से विषम कर्मों को सम करने हेतु केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं, समुद्घात करते हैं। १४२- सव्वे वि णं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छंति ? णो इणढे समढे अकित्ता णं समुग्घायं, अणंता केवली जिण । जरामरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥ १४२- भगवन्! क्या सभी केवली समुद्घात करते हैं ? गौतम! ऐसा नहीं होता। समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन—वीतराग (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त–सर्वथा रहित होकर सिद्धि-सिद्धावस्था रूप सर्वोत्कृष्ट गति को प्राप्त हुए हैं। समुद्घात का स्वरूप १४३ - कइसमए णं भंते ! आउज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेजसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते। १४३- भगवन् ! आवर्जीकरण—उदीरणावलिका में कर्मप्रक्षेप व्यापार—कर्मों को उदयावस्था में लाने का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है।

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