Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रव्रजित श्रमणों का उपपात
कोटि माना गया है।
क्षेत्र - पल्योपम—- ऊपर जिस कूप या धान के विशाल कोठे की चर्चा है, यौगलिक के बाल खंडों से उपर्युक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच में आकाश प्रदेश — रिक्त स्थान रह जाते हैं। वे खंड चाहे कितने ही छोटे हों, आखिर वे रूपी या मूर्त हैं, आकाश अरूपी या अमूर्त है। स्थूल रूप में उन खंडों
बीच रहे आकाश-प्रदेशों की कल्पना नहीं की जा सकती, पर सूक्ष्मता से सोचने पर वैसा नहीं है। इसे एक स्थूल उदाहरण से समझा जा सकता है—कल्पना करें, अनाज के एक बहुत बड़े कोठे को कूष्मांडों- कुम्हड़ों से भर दिया गया। सामान्यतः देखने में लगता है, वह कोठा भरा हुआ है, उसमें कोई स्थान खाली नहीं है, पर यदि उसमें नींबू भरे जाएं तो वे अच्छी तरह समा सकते हैं, क्योंकि सटे हुए कुम्हड़ों के बीच में स्थान खाली जो हैं। यों नींबूओं से भरे जाने पर भी सूक्ष्म रूप में और खाली स्थान रह जाता है, बाहर से वैसा लगता नहीं । यदि उस कोठे में सरसों भरना चाहे तो वे भी समा जायेंगे। सरसों भरने पर भी सूक्ष्म रूप में और स्थान खाली रहता है। यदि नदी के रजःकण उसमें भरे जाएं, तो वे भी समा सकते हैं।
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दूसरा उदाहरण दीवाल का है। चुनी हुई दीवाल में हमें कोई खाली स्थान प्रतीत नहीं होता पर, उसमें हम अनेक खूंटियां, कीलें आदि गाड़ सकते हैं। यदि वास्तव में दीवाल में स्थान खाली नहीं होता तो यह कभी संभव नहीं था। दीवाल में स्थान खाली है, मोटे रूप में हमें मालूम नहीं पड़ता । अस्तु ।
क्षेत्र - पल्योपम की चर्चा के अन्तर्गत यौगलिक के बालों के खंडों के बीच-बीच में जो आकाश प्रदेश होने की बात है, उसे भी इसी दृष्टि से समझा जा सकता है । यौगलिक के बालों के खंडों को संस्पृष्ट करने वाले आकाशप्रदेशों में से प्रत्येक को प्रति समय निकालने की कल्पना की जाय । यों निकालते-निकालते जब सभी आकाशप्रदेश निकाल लिए जाएं, कुआ बिलकुल खाली हो जाय, वैसा होने में जितना काल लगे, उसे क्षेत्र - पल्योपम कहा जाता है। इसका काल-परिमाण असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है।
क्षेत्र - पल्योपम दो प्रकार का है— व्यावहारिक एवं सूक्ष्म । उपर्युक्त विवेचन व्यावहारिक क्षेत्र - पल्योपम का
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सूक्ष्मक्षेत्र-पल्योपम इस प्रकार है— कुए में भरे यौगलिक के केश-खंडों से स्पृष्ट तथा अस्पृष्ट सभी आकाश– प्रदेशों में से एक-एक समय में एक-एक प्रदेश निकालने की यदि कल्पना की जाय तथा यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआ समग्र आकाश-प्रदेशों से रिक्त हो जाय वह काल परिमाण सूक्ष्म-क्षेत्र पल्योपम है। इसका भी काल-परिमाण असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है । व्यावहारिक क्षेत्र - पल्योपम से इसका काल असंख्यात गुना अधिक होता है।
प्रव्रजित श्रमणों का उपपात
७५ से जे इमे जाव' सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा— कंदप्पिया, कुक्कुइया, मोहरिया, गीयरइप्पिया, नच्चणसीला, ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियायं पाउणंति, बहूइं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयअप्पडिक्कंता कालमासे
१. देखें सूत्र संख्या ७१