Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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कषाय-प्रतिसंलीनता, योग-प्रतिसंलीनता
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विषयों में राग-द्वेष के संचार को रोकना, उस ओर से उदासीन रहना, २. चक्षुरिन्द्रिय-विषय-प्रचार-निरोध नेत्रों के विषय-रूप में प्रवृत्ति को रोकना रूप नहीं देखना अथवा अनायास दृष्ट प्रिय-अप्रिय, सुन्दर-असुन्दर रूपात्मक विषयों में राग द्वेष के संचार को रोकना, उस ओर से उदासीन रहना, ३. घ्राणेन्द्रिय-विषय-प्रचार-निरोध-नासिका के विषय-गन्ध में प्रवृत्ति को रोकना अथवा घ्राणेन्द्रिय को प्राप्त सुगन्ध-दुर्गन्धात्मक विषयों में राग-द्वेष के संचार को रोकना, इस ओर से उदासीन रहना, ४. जिह्वेन्द्रिय-विषय-प्रचार-निरोध—जीभ के विषयों में प्रवृत्ति को रोकना अथवा जिह्वा को प्राप्त स्वादु-अस्वादु रसात्मक विषयों, पदार्थों में राग-द्वेष के संचार को रोकना, ४. स्पर्शेन्द्रियविषय-प्रचार-निरोध त्वचा के विषय में प्रवृत्ति को रोकना अथवा स्पर्शेन्द्रिय को प्राप्त सुख-दुःखात्मक, अनुकूलप्रतिकूल विषयों में राग-द्वेष के संचार को रोकना।
यह इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता का विवेचन है।
कषाय-प्रतिसंलीनता–कषाय-प्रतिसंलीनता क्या है उसके कितने प्रकार हैं ? कषायप्रतिसंलीनता चार प्रकार की बतलाई गई है। वह इस प्रकार है—१. क्रोध के उदय का निरोध क्रोध को नहीं उठने देना अथवा उदयप्राप्त-उठे हुए क्रोध को विफल-प्रभावशून्य बनाना, २. मान के उदय का निरोध अहंकार को नहीं उठने देना अथवा उदयप्राप्त अहंकार को विफल निष्प्रभाव बनाना, ३. माया के उदय का निरोध माया को उभार में नहीं आने देना अथवा उदयप्राप्त माया को विफल—प्रभावरहित बना देना, ४. लोभ के उदय का निरोध -लोभ को नहीं उभरने देना अथवा उदयप्राप्त लोभ को प्रभावशून्य बना देना।
यह कषाय-प्रतिसंलीनता का विवेचन है।
विवेचन– कषायों से छूट पाना बहुत कठिन है। कषायों से मुक्त होना मानव के लिए वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है। कषाय के कारण ही आत्मा स्वभावावस्था से च्युत होकर विभावावस्था में पतित होती है। अतएव ज्ञानी जनों ने "कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव" कषाय-मुक्ति को ही वस्तुतः मुक्ति कहा है। कषायात्मक वृत्ति से छूटने के लिए साधक को अपना आत्मबल जगाये सतत अध्यवसाययुक्त तथा अभ्यासरत रहना होता है।
___ कषाय-विजय के लिए तत्तद्विपरीत भावनाओं का पुनः पुनः अनुचिन्तन भी अध्यवसाय को विशेष शक्ति प्रदान करता है। जैसे क्रोध का विपरीत भाव क्षमा होता है। क्रोध आने पर मन में क्षमा तथा मैत्री भाव को पुनः पुनः चिन्तन करना, अहंकार उठने पर मृदुता, नम्रता, विनय की पवित्र भावना बारबार मन में जागरित करना, इसी प्रकार माया का भाव उत्पन्न होने पर ऋजुता, सौम्यता की भावना को विपुल प्रश्रय देना तथा लोभ जगने पर अन्तरतम को सन्तोष से अनुप्राणित करना कषायों से बचे रहने में बहुत सहायक सिद्ध होता है। योग-प्रतिसंलीनता
योग प्रतिसंलीनता क्या है—कितने प्रकार की है ? योग-प्रतिसंलीनता तीन प्रकार की बतलाई गई है१. मनोयोग-प्रतिसंलीनता, २. वाग्योग-प्रतिसंलीनता तथा ३. काययोग-प्रतिसंलीनता। मनोयोग प्रतिसंलीनता क्या है ?
अकुशल-अशुभ दुर्विचारपूर्ण मन का निरोध, मन में बुरे विचारों को आने से रोकना अथवा कुशल शुभसद्विचार पूर्ण मन का प्रवर्तन करना, मन में सद्विचार लाते रहने का अभ्यास करना मनोयोग-प्रतिसंलीनता है।