Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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औपपातिकसूत्र धवलदंतसेढी, हुयवह-णिद्धंत-धोय-तत्त-तवणिज-रत्ततलतालुजीहा, अंजण-घण-कसिण-रुयगरमणिज-णिद्ध-केसा, वामेगकुंडलधरा, अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता, ईसीसिलिंधपुष्फप्पगासाइं असंकिलिहाइं सुहुमाइं वत्थाई पवरपरिहिया, वयं च पढमं समइक्कंता, बिइयं च असंपत्ता, भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा, तलभंगय-तुडिय-पवरभूसण-निम्मलमणिरयण-मंडियभुया, दसमुद्दामंडियग्गहत्था, चुलामणिचिंधगया, सुरूवा, महिड्डिया, महज्जुइया, महब्बला, महायसा, महासोक्खा, महाणुभागा, हारविराइयवच्छा, कडगतुडियथंभियभुया; अंगय-कुंडल-मट्टगंडतला, कण्णपीढधारी, विचित्तहत्थाभरणा, विचित्तमालामउलिमउडा, कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया, कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणा, भासुरबोंदी, पलंबवणमालधरा, दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं रूवेणं, एवं फासेणं, संघाएणं, संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, जुईए, पभाए, छायाए, अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा, पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म रत्ता, समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति, णमंसंति, (वंदित्ता) णमंसित्ता [साइं साइं णामगोयाइं सावेन्ति ] णच्चासण्णे, णाइदूरे सुस्सूसमाणा, णमंसमाणा, अभिमुहा, विणएणं पंजलिउडा पजुवासंति।
३३— उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भूत-प्रकट हुए। काले महानीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसें के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उनका काला वर्ण तथा दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे। नेत्रों की भौंहें (सूक्ष्म रोममय) निर्मल थीं। उनके नेत्रों का वर्ण कुछ-कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था। उनकी नासिकाएँ गरुड के सदृश, लम्बी, सीधी तथा उन्नत थीं। उनके होठ परिपुष्ट मूंगे एवं बिम्ब फल के समान लाल थे। उनकी दन्तपंक्तियाँ स्वच्छ निर्मल–कलंक शून्य चन्द्रमा के टुकड़ों जैसी उज्ज्वल तथा शंख, गाय के दूध के झाग, जलकण एवं कमलनाल के सदृश धवल श्वेत थीं। उनकी हथेलियाँ, पैरों के तलवे, तालु तथा जिह्वा—अग्नि में गर्म किए हुए, धोये हुए पुनः तपाये हुए, शोधित किए हुए निर्मल स्वर्ण के समान लालिमा लिए हुए थे। उनके केश काजल तथा मेघ के सदृश काले तथा रुचक मणि के समान रमणीय और स्निग्ध—चिकने, मुलायम थे। उनके बायें कानों में एक-एक कुण्डल था (दाहिने कानों में अन्य आभरण थे) उनके शरीर आर्द्र-गीले घिसकर पीठी बनाये हुए चन्दन से लिप्त थे। उन्होंने सिलीध्र-पुष्प जैसे कुछ-कुछ श्वेत या लालिमा लिये हुए श्वेत, सूक्ष्म महीन, असंक्लिष्ट निर्दोष या ढीले वस्त्र सुन्दर रूप में पहन रखे थे। वे प्रथम वय—बाल्यावस्था को पार कर चुके थे, मध्यम वय—परिपक्व युवावस्था नहीं प्राप्त किये हुए थे, भद्र यौवन—भोली जवानी–किशोरावस्था में विद्यमान थे। उनकी भुजाएँ तलभंगकों—बाहुओं के आभरणों, त्रुटिकाओं—बाहुरक्षिकाओं या तोड़ों, अन्यान्य उत्तम आभूषणों तथा निर्मल उज्ज्वल रत्नों, मणियों से सुशोभित थीं। उनके हाथों की दशों अंगुलियां अंगूठियों से मंडित—अलंकृत थीं। उनके मुकुटों पर चूडामणि के रूप में विशेष चिह्न थे। वे सुरूप सुन्दर रूपयुक्त, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान्, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे। उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे। वे अपनी भुजाओं पर कंकण तथा भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखनेवाली आभरणात्मक पट्टियाँ एवं अंगद—भुजबंध धारण किये हुए थे। उनके मृष्ट केसर, कस्तूरी आदि से मण्डित—चित्रित कपोलों पर कुंडल व अन्य कर्णभूषण शोभित थे। वे