Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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औपपातिकसूत्र
यह अप्रशस्त काय-विनय है। प्रशस्त काय-विनय क्या है ?
प्रशस्त काय-विनय को अप्रशस्त काय-विनय की तरह समझ लेना चाहिए। अर्थात् अप्रशस्त काय-विनय में जहाँ क्रिया के साथ अनुपयोग–अजागरुकता या असावधानी जुड़ी रहती है, वहाँ प्रशस्त काय-विनय में पूर्वोक्त प्रत्येक क्रिया के साथ उपयोग-सावधानी जुड़ी रहती है।
यह प्रशस्त काय-विनय है। इस प्रकार यह काय-विनय का विवेचन है। लोकोपचार-विनय क्या है उसके कितने भेद हैं ? लोकोपचार-विनय के सात भेद बतलाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं१. अभ्यासवर्तिता— गुरुजनों, बड़ों, सत्पुरुषों के समीप बैठना। २. परच्छन्दानुवर्तिता- गुरुजनों, पूज्य जनों के इच्छानुरूप प्रवृत्ति करना। ३. कार्यहेतु- विद्या आदि प्राप्त करने हेतु, अथवा जिनसे विद्या प्राप्त की, उनकी सेवा-परिचर्या करना।
४. कृत-प्रतिक्रिया- अपने प्रति किये गये उपकारों के लिए कृतज्ञता अनुभव करते हुए सेवा-परिचर्या करना।
५. आर्त-गवेषणता- रुग्णता, वृद्धावस्था से पीड़ित संयत जनों, गुरुजनों की सार-सम्हाल तथा औषधि, पथ्य आदि द्वारा सेवा-परिचर्या करना।
६. देशकालज्ञता- देश तथा समय को ध्यान में रखते हुए ऐसा आचरण करना, जिससे अपना मूल लक्ष्य व्याहत न हो।
७. सर्वार्थाप्रतिलोमता— सभी अनुष्ठेय विषयों, कार्यों में विपरीत आचरण न करना, अनुकूल आचरण करना।
यह लोकोपचार-विनय है। इस प्रकार यह विनय का विवेचन है। वैयावृत्त्य क्या है उसके कितने भेद हैं ? वैयावृत्त्य- आहार, पानी, औषध आदि द्वारा सेवा-परिचर्या के दश भेद हैं। वे इस प्रकार हैं
१. आचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, ३. शैक्ष- नवदीक्षित श्रमण का वैयावृत्त्य, ४. ग्लान रुग्णता आदि से पीड़ित का वैयावृत्त्य, ५. तपस्वी— तेला आदि तप-निरत का वैयावृत्त्य, ६. स्थविरवय, श्रुत और दीक्षा-पर्याय में ज्येष्ठ का वैयावृत्त्य, ७. साधर्मिक का वैयावृत्त्य, ८. कुल का वैयावृत्त्य, ९. गण का वैयावृत्त्य, १०. संघ का वैयावृत्त्य।
यह वैयावृत्त्य का विवेचन है। स्वाध्याय क्या है वह कितने प्रकार का है ? स्वाध्याय पाँच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है