Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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औपपातिकसूत्र
सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता । तं जहा—१ खंती, २ मुत्ती, ३ अज्जवे,
४ मद्दवे।
सुक्कस्स झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ । तं जहा - १ अवायाणुप्पेहा, २ असुभापेहा, ३ अतवत्तियाणुप्पेहा, ४ विपरिणामाणुप्पेहा, से तं झाणे ।
से किं तं विउस्सग्गे ? विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा —–१ दव्वविउस्सग्गे, २ भावविउसग्गे य।
५०
से किं तं दव्वविउस्सग्गे ? दव्वविउस्सग्गे चउव्विहे पण्णत्ते । २ गणविउस्सग्गे, ३ उवहिविउस्सग्गे, ४ भत्तपाणविउस्सग्गे, से तं दव्वविउस्सग्गे ।
से किं तं भावविउस्सग्गे ? भावविउस्सग्गे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—१ कसायविउस्सग्गे, २ संसारविउस्सग्गे, ३ कम्मविउस्सग्गे ।
से किं तं कसायविउस्सग्गे ? कसायविउस्सग्गे चडव्व्हेि पण्णत्ते । तं जहा—१ कोहकसायविउस्सग्गे, २ माणकसायविउस्सग्गे, ३ मायाकसायविउस्सग्गे, ४ लोहकसायविउस्सग्गे, से तं कसायविउस्सग्गे ।
से किं तं संसारविउस्सग्गे ? संसारविउस्सग्गे चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—१ णेरइयसंसारविउस्सग्गे, २ तिरियसंसारविउस्सग्गे, ३ मणुयसंसारविउस्सग्गे, ४ देवसंसारविउस्सग्गे, से तं संसारविउस्सग्गे ।
जहा — १ सरीरविउस्सग्गे,
से किं तं कम्मविउस्सग्गे ? कम्मविउस्सग्गे अट्ठविहे पण्णत्ते । तं जहा—१ णाणावरणिज्ज-. कम्मविउस्सग्गे २ दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे ३ वेयणिज्जकम्मविउस्सग्गे ४ मोहणिज्जकम्मविउस्सग्गे ५ आउयकम्मविउस्सग्गे ६ णामकम्मविउस्सग्गे ७ गोयकम्मविउस्सग्गे ८ अंतरायकम्मविउसग्गे । से तं कम्मविउस्सग्गे, से तं भावविउस्सग्गे ।
३०– इस प्रकार विहरणशील वे श्रमण भगवान् आभ्यन्तर तथा बाह्य तपमूलक आचार का अनुसरण करते थे। आभ्यन्तर तप छह प्रकार का है तथा बाह्य तप भी छह प्रकार का है।
बाह्य तप क्या ? वे कौन-कौन से हैं ? बाह्य तप छह प्रकार के हैं
१. अनशन – आहार नहीं करना, २ . अवमोदरिका —— भूख से कम खाना या द्रव्यात्मक, भावात्मक साधनों को कम उपयोग में लेना, ३ . भिक्षाचर्या - भिक्षा से प्राप्त संयत जीवनोपयोगी आहार, वस्त्र, पात्र, औषध आदि वस्तुएं ग्रहण करना अथवा वृत्तिसंक्षेप – आजीविका के साधनों का संक्षेप करना, उन्हें घटाना, ४. रस- परित्याग — सरस पदार्थों को छोड़ना या रसास्वाद से विमुख होना, ५. कायक्लेश — इन्द्रिय- दमन या सुकुमारता, सुविधाप्रियता, आरामतलबी छोड़ने हेतु तदनुरूप कष्टमय अनुष्ठान स्वीकार करना, ६ . प्रतिसंलीनता — आभ्यन्तर तथा बाह्य चेष्टाएं संवृत करने हेतु तदुपयोगी बाह्य उपाय अपनाना।
अनशन क्या है—वह कितने प्रकार का है ? अनशन दो प्रकार का है—१ . इत्वरिक मर्यादित समय के लिए आहार का त्याग। २. यावत्कथिक—– जीवनभर के लिए आहार - त्याग ।