Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२४
औपपातिकसत्र
अद्धमासपरियाया, अप्पेगइया मासपरियाया-एवं दुमास-तिमास जाव (चउमास-पंचमास-छमाससत्तमास-अट्ठमास-नवमास-दसमास-) एक्कारस-मास परियाया, अप्पेगइया वासपरियाया. दुवासपरियाया तिवासपरियाया अप्पेगइया अणेगवासपरियाया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति।
२३– तब श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी-शिष्य बहुत से श्रमण संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे। उनमें अनेक ऐसे थे, जो उग्र आरक्षक अधिकारी, भोग राजा के मंत्रिमंडल के सदस्य, राजन्य राजा के परामर्शमंडल के सदस्य, ज्ञात—ज्ञातवंशीय या नागवंशीय, कुरुवंशीय, क्षत्रिय क्षत्रिय वंश के राजकर्मचारी, सुभट, योद्धा युद्धोपजीवी सैनिक, सेनापति, प्रशास्ता–प्रशासन-अधिकारी, सेठ, इभ्यहाथी ढक जाय एतत्प्रमाण धनराशि युक्त —अत्यन्त घनिक–इन सभी वर्गों में से दीक्षित हुए थे। और भी बहुत से उत्तम जाति-उत्तम मातृपक्ष, उत्तम कुल—पितृपक्ष, सुन्दररूप, विनय, विज्ञान-विशिष्ट ज्ञान, वर्णदैहिक आभा, लावण्य-आकार की स्पृहणीयता, विक्रम पराक्रम, सौभाग्य तथा क्रान्ति से सुशोभित, विपुल धन-धान्य के संग्रह और पारिवारिक सुख-समृद्धि से युक्त, राजा से प्राप्त अतिशय वैभव सुख आदि से युक्त इच्छित भोगप्राप्त तथा सुख से लालित-पालित थे, जिन्होंने सांसारिक भोगों के सुख को किंपाक फल के सदृश असार, जीवन को जल में बुलबुले तथा कुश के सिरे पर स्थित जल की बूंद की तरह चंचल जानकर सांसारिक अध्रुव–अस्थिर पदार्थों को वस्त्र पर लगी हुई रज के समान झाड़ कर, हिरण्य-रौप्य या रूपा, सुवर्ण घड़े हुए सोने के आभूषण, धन-गायें आदि, धान्य, बल–चतुरंगिणी सेना, वाहन, कोश-खजाना, कोष्ठागार-धान्य भण्डार, राज्य, राष्ट्र, पुर–नगर, अन्त:पुर, प्रचुर धन, कनक–बिना घड़ा हुआ सुवर्ण, रत्न, मणि, मुक्ता, शंख, मूंगे, लाल रत्न—मानिक आदि बहुमूल्य सम्पत्ति का परित्याग कर, वितरण द्वारा सुप्रकाशित कर, दान योग्य व्यक्तियों को प्रदान कर, मुंडित होकर अगार-गृह जीवन से, अनगार-श्रमण जीवन में दीक्षित हुए। कइयों को दीक्षित हुए आधा महीना, कइयों को एक महीना, दो महीने (तीन महीने, चार महीने, पांच महीने, छह महीने, सात महीने, आठ महीने, नौ महीने, दश महीने)
और ग्यारह महीने हुए थे, कइयों को एक वर्ष, कइयों को दो वर्ष, कइयों को तीन वर्ष तथा कइयों को अनेक वर्ष हुए थे। ज्ञानी, शक्तिधर, तपस्वी
२४- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो अप्पेगइया आभिणिबोहियणाणी जाव (सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी,) केवलणाणी। अप्पेगइया मणबलिया, वयबलिया कायबलिया। अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था एवंवएणं कारणं। अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता एवं जल्लोसहिपत्ता, विप्पोसहिपत्ता, आमोसहिपत्ता, सव्वोसहिपत्ता। अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी एवं बीयबुद्धी, पडबुद्धी। अप्पेगइया पयाणुसारी, अप्पेगइया संभिन्नसोया, अप्पेगइया खीरासवा, महुआसवा अप्पेगइया सप्पिआसवा अप्पेगइया अक्खीणमहाणसिया एवं उज्जुमई अप्पेगइया विउलमई, विउव्वणिड्डिपत्ता, चारणा, विजाहरा, आगासाइवाईणो। अप्पेगइया कणगावलितवोकम्मं पडिवण्णा, एवं एगावलिं खुड्डागसीहनिक्कीलियं तवोकम्मं पडिवण्णा, अप्पेगइया