Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
औपपातिकसूत्र
सोलह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, पन्द्रह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, चवदह दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, तेरह दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, बारह दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, ग्यारह दिन का उपवास, नौ दिन का उपवास, दश दिन का उपवास, आठ दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, सात दिन का उपवास, पाँच दिन का उपवास, छह दिन का उपवास, चार दिन का उपवास, पाँच दिन का उपवास, तेला, चार दिन का उपवास, बेला, उपवास, बेला तथा उपवास करे।
__इस तप की एक परिपाटी में १+२+१+३+२+४+३+५+४+६+५+७+६+८+७+९+८+१०+९+११+१० +१२+११+१३+१२+१४+१३+१५+१४+१६+१५+१६+१४+१५+१३+१४+१२+१३+११+१२+१०+११+९ +१०+८+९+७ +८+६+७+५+६+४+५+३+४+२+३+१+२+१ = ४९७ दिन उपवास + ६१ दिन पारणा = कुल ५५८ दिन = एक वर्ष छह महीने तथा अठारह दिन लगते हैं। ___ महासिंहनिष्क्रीडित तप की चारों परिपाटियों में ५५८+५५८+५५८+५५८ = २२३२ दिन = छह वर्ष दो महीने और बारह दिन लगते हैं। भद्र प्रतिमा
यह प्रतिमा कायोत्सर्ग से सम्बद्ध है। कायोत्सर्ग निर्जरा के बारह भेदों में अंतिम है। यह काय तथा उत्सर्गइन दो शब्दों से बना है। काय का अर्थ शरीर तथा उत्सर्ग का अर्थ त्याग है। शरीर को सर्वथा छोड़ा जा सके, यह तो संभव नहीं है पर भावात्मक दृष्टि से शरीर से अपने को पृथक् मानना, शरीर की प्रवृत्ति, हलन-चलन आदि क्रियाएं छोड़ देना, यों नि:स्पन्द, असंसक्त, आत्मोन्मुख स्थिति पाने हेतु यत्नशील होना कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग में साधक अपने आपको देह से एक प्रकार से पृथक् कर लेता है, देह को शिथिल कर देता है, तनावमुक्त होता है, आत्मरमण में संस्थित होने का प्रयत्न करता है।
इस प्रतिमा में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर दिशा में मुख कर क्रमशः प्रत्येक दिशा में चार पहर तक कायोत्सर्ग करने का विधान है। यों इस प्रतिमा का सोलह पहर या दो दिन-रात का कालमान है। महाभद्र प्रतिमा
इस प्रतिमा में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर दिशा में मुख कर क्रमशः प्रत्येक दिशा में एक-एक अहोरात्र दिन-रात तक कायोत्सर्ग करने का विधान है। यों इस प्रतिमा का चार दिन-रात का कालमान है। सर्वतोभद्र प्रतिमा
__ पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान, ऊर्ध्व एवं अधः—क्रमशः इन दश दिशाओं की ओर मुख कर प्रत्येक दिशा में एक-एक दिन-रात कायोत्सर्ग करने का इस प्रतिमा में विधान है। यों इसे साधने में दश दिन-रात का समय लगता है।
इस प्रतिमा के अन्तर्गत एक दूसरी विधि भी बतलाई गई है। तदनुसार इसके लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा तथा महासर्वतोभद्र प्रतिमा ये दो भेद किये गये हैं।