Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text ________________
प्रभेय चन्द्रिका टीका श० ९ उ० ३२ सू० ३ उद्देशकविषयविवरणम् ३ भङ्गाः एवं त्रिकसंयोगे, चतुष्कसंयोगे पश्चकसंयोगे भङ्गाः, षट्संयोगे भङ्गाः, सप्त नैरयिकाः, द्विक - त्रिक - चतुष्क - पञ्चक-षट्क-सप्तकसंयोगेषु भङ्गाः, अष्ट नैरयिकाः, द्विक-त्रिक-चतुष्क-पश्चक-षट्क - सप्तका-टक - संयोगेषु भङ्गाः । नव नैरयिकाः, द्विकसंयोगादि भङ्गाः। दश नैरयिकाः, द्विकसंयोगादिभङ्गाः, संख्यातनैरयिकाः द्विक - त्रिक - संयोगादिकभंगाः, असंख्यातनैरयिकाः, द्विकसंयोगादिभङ्गाः, उत्कृष्टमवेशनकम् , द्विक - त्रिक - चतुष्क - पञ्च - षट्-सप्तसंयोगभङ्गाः । नैरयिकमवेशनकाल्पबहुत्ववक्तव्यता, तिर्यमवेशनकप्रकारः-एकद्वित्रिचतुःपञ्च यावत् असंख्याततिर्यग्योनिकप्रवेशनकम् । उत्कृष्ट - तिर्यग्योनिकप्रवेशनकपकारः, तियग्योनिकप्रवेशनकाल्पवहुत्ववक्तव्यता । एकद्वित्रिक-यावत् असंख्याताः । मनुष्याः। उत्कृष्टमनुष्यप्रवेशनकम् । मनुष्यप्रवेसंयोग में १०५ भंग, इसी तरह से त्रिकसंयोग में, चतुष्क संयोग में पंचकसंयोग में और छहसंयोग में भंग होते हैं, सात नैरयिक-इनके द्विक, त्रिक, चतुष्क, पंचक और षट्कसंयोगमें एवं सप्तकसंयोग भङ्ग होते हैं, आठ नैरयिकोंके द्विक, त्रिक, चतुष्क, पंचक, षट्क सप्तक और अष्टकमें संयोग भंग होते हैं, नौ नैरयिकीके द्विक संयोगादि भग-१० नैरयिक-इनके द्विकसंयोगादिभङ्ग, संख्यात नैरयिक इनके द्विक त्रिक संयोगादिभंग, असंख्यात नैरयिक-इसके द्रिकसंयोगादिभङ्ग, उत्कृष्ट प्रवेशनक दिक, त्रिक, चतुष्क, पंच, षटू, सप्त संयोग में भङ्ग नैरयिक प्रवेशनक की अल्पयहुत्ववक्तव्यता तिर्यक् प्रवेशनक प्रकार एक द्रि, त्रि, चार, पांच यावत् असंख्यातनिर्यग्योनिकप्रवेशनक-उत्कृष्टतिर्यग्योनिक प्रवेशनक प्रकार, तिर्यग्योनिक प्रवेशनक की अल्पबहुत्ववक्तव्यता एक द्वि, त्रिक यावत् मनुष्य, उत्कृष्ट मनुष्यप्रवेशनक मनुष्यप्रवेशनक की
૭ ભાંગ, ઢીક સંગમાં ૧૦૫ ભાંગા. એજ પ્રમાણે ત્રિક સંગી, ચતુક સંગી, પંચમ સંગી અને ષટુ સંયોગી ભાંગાનું કથન. સાત નરયિકના वि, निश, चतुः४, ५यम, १२४ मने सप्तम सयाजी सांगानु थन. मा। નારકોના દ્વિક સંગીથી લઈને અષ્ટમ સંચાગી પર્યન્તના ભાંગાનું કથન. નવ નૈરયિકોના દ્વિક સંયેગાદિ ભાંગાનું કથન, ૧૦ નરયિકેના દ્વિક સંગાદિ ભાંગાનું કથન, સંખ્યાત નૈરયિકના દ્વિક ત્રિકાદિ ભાંગાનું કથન, અસંખ્યાત નરયિકેના દ્વિક સાગાદિ ભાંગનું કથન. ઉત્કૃષ્ટ પ્રવેશનક. દ્રિક, ત્રિક, ચતુષ્ક પંચ, ષટ અને સપ્ત સંગી ભાંગા. નરયિક પ્રવેશનકની અ૫ બહત્વની વક્તવ્યતા, તિર્યકુ પ્રવેશનક પ્રકાર એક, બે, ત્રણ, ચાર, પાંચથી લઈને અસં
ખ્યાત સુધીના તિર્થાનિક પ્રવેશનક. ઉત્કૃષ્ટ તિર્યંગ્યાનિક પ્રવેશનક પ્રકાર તિયનિક પ્રવેશનકની અલપ બહુવ વક્તવ્યતા. એક, બે, ત્રણ ચાવતું ઉત્કૃષ્ટ
श्री. भगवती सूत्र : ८
Loading... Page Navigation 1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 685