Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ५ के यथार्थ तत्त्ववचनों को ही श्रुत और श्रुति कहा है। अतीत काल में गुरु के मुखारविन्द से ही शिष्यगण ज्ञान श्रवण करते थे, इसीलिए वेद की संज्ञा श्रुति है और जैन आगमों की संज्ञा श्रुत है। जैन आगमों के प्रारम्भ में 'सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं' वाक्य का प्रयोग है। लम्बे समय तक श्रुत सुन करके ही स्मृतिपटल पर रखा जाता रहा है। जब स्मृतियाँ धुंधली हुई, तब श्रुत लिखा गया। यही बात वेद और पाली पिटकों के लिए भी है। श्रुत के सम्बन्ध में तत्त्वार्थभाष्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार सिद्धसेन गणी ने लिखा है-इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला ग्रन्थानुसारी विज्ञान श्रुत है। आगम का पर्यायवाची सूत्र
अनुयोगद्वार सूत्र में आगम के लिए 'सुत्तागमे' शब्द का प्रयोग हुआ है। आगम का अपर नाम सूत्र भी है। एक विशिष्ट प्रकार की शैली में लिखे गये ग्रन्थ सूत्र के नाम से जाने जाते हैं। वैदिक परम्परा में गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र आदि अनेक धर्मग्रन्थ सूत्र की विधा में लिखे गए हैं। व्याकरण में भी सूत्र शैली को अपनाया गया है। सूत्र शैली की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें कम शब्दों में ऐसी बात कही जाती है जो व्यापक और विराट् अर्थ को लिए हुए हो। इस प्रकार की जो विशिष्ट शब्द-रचना है, वह सूत्र कहलाती है। यहाँ पर यह सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि सूत्र की जो परिभाषा की गई है-जो सूचना दे या संक्षेप में व्यापक अर्थ को बताये, वह सूत्र है; तो इस परिभाषा के अनुसार जैन आगमों को सूत्र की संज्ञा देना कहाँ तक उपयुक्त है? वैदिक परम्परा के गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र जो बहुत ही संक्षेप में लिखे हुए हैं, वैसे जैन आगम नहीं लिखे गये हैं।
समाधान है-वैदिक परम्परा में वैदिक आचार के सम्बन्ध में जो नाना प्रकार के उपदेश हैं, उन उपदेशों का गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र में संग्रह किया गया है। बिखरे हुए आचार-चिन्तन को सूत्रबद्ध कर सुरक्षित किया गया है, वैसे ही जैन धर्म और दर्शन के आचार और विचार के विभिन्न पहलुओं को ग्रन्थों में आबद्ध कर सुरक्षित करने के कारण ये आगम, सूत्र कहे गये। आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक नियुक्ति में कहा है-तीर्थंकर अर्थरूप में उपदेश देते हैं और गणधर उसे सूत्रबद्ध करते हैं"। द्वादशांगी में दूसरे अंग का नाम सूत्रकृतांग है और बौद्ध त्रिपिटकों में द्वितीय पिटक का नाम सुत्तपिटक है। इन दोनों ग्रन्थों में सूत्र शब्द का प्रयोग हुआ है, ये दोनों ग्रन्थ सूत्र शैली में नहीं है तथापि इन दोनों ग्रन्थों में जो सूत्र शब्द आया है, वह सूत्रमनुसरन्
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